विष्णुदेव साय को CM बना पीएम मोदी ने 24 पर साधा निशाना
भाजपा ने वरिष्ठ आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ की कमान सौंपी है। साय छत्तीसगढ़ के अगले मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा पदाधिकारियों ने रविवार को बताया कि रविवार को रायपुर स्थित पार्टी कार्यालय में पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में नवनिर्वाचित विधायकों ने साय को अपना नेता चुन लिया। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने साय के नाम का प्रस्ताव किया जिसका प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने समर्थन किया। बैठक में सर्वसम्मति से साय को भाजपा विधायक दल का नेता चुन लिया गया। माना जा रहा है कि पीएम मोदी ने साय को सीएम बना 2024 के लोकसभा चुनावों को भी साधने की कोशिश की है।
वैसे पहले से अनुमान लगाया जा रहा था कि भाजपा तीनों राज्यों में से किसी एक में सीएम पद पर आदिवासी चेहरे को बिठा सकती है। इसके पीछे साल 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रभावी आदिवासी फैक्टर को भी माना जा रहा था। खासकर छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की आबादी को चुनाव के लिहाज से निर्णायक माना जाता है। ताजा विधानसभा चुनावों में भी आदिवासी समुदाय ने भाजपा के पक्ष में जोरदार वोटिंग की है।
यदि समुदाय का पार्टी के प्रति ऐसा ही विश्वास लोकसभा चुनावों में भी बना रहा तो उसे बेहद फायदा होगा। हाल ही में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 90 में से 54 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि कांग्रेस 35 सीट पर जा सिमटी है। खासकर छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी माने जाने वाले आदिवासी सीटों पर भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया है। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 17 आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज की है। सनद रहे छत्तीसगढ़ की लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासी समुदाय की है।
छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा की रणनीति पर गौर करें तो पाते हैं कि शुरुआत से ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आदिवासी इलाकों पर फोकस किया। प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा ने आदिवासी इलाकों में बड़ी संख्या में रैलियां की। यही नहीं पार्टी ने आदिवासी इलाकों से ही दोनों परिवर्तन यात्राओं की शुरुआत की। यही नहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने आदिवासी समाज और महिलाओं को फोकस करते हुए तमाम ऐलान भी किए।
यदि सूबे के आदिवासी बेल्ट के चुनाव नतीजों को देखें तो पाते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 25 आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज की थी जो इस बार घटकर मात्र 11 रह गईं। वहीं भाजपा ने पिछले बार के आंकड़ों में तीन संख्या के इजाफे के साथ इसे 17 कर ली थी। चुनाव विश्लेषक कृष्णा दास की मानें तो छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज को सीटें जिताने और सरकार बनाने में महत्वपूर्ण माना जाता है। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद भाजपा आदिवासी बेल्ट में गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही लेकिन बाद में यह पकड़ ढ़ीली पड़ती गई। अब पार्टी ने एकबार फिर आदिवासी समाज को साधने की रणनीति पर काम शुरू किया है।
साल 2003 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 34 सीटें आरक्षित थीं। उस चुनाव में भाजपा ने अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को 50 सीटें जीतकर तगड़ी शिकस्त दी थी। इस चुनाव में भाजप के खाते में 25 एसटी आरक्षित सीटें जबकि कांग्रेस को नौ एसटी आरक्षित सीटें मिली थीं। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 सीटें जीतकर दोबारा सरकार बनाई। इस चुनाव में भाजपा ने 19 एसटी आरक्षित सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 10 एसटी सीटें गई थीं।
साल 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 29 में से 18 आदिवासी आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाया था जबकि भाजपा के खाते में 11 एसटी आरक्षित सीटें आई थीं। फिर भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। भाजपा ने 49 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाई थी। साल 2018 में भी आदिवासी बेल्ट ने भाजपा का साथ नहीं दिया। नतीजतन भाजपा के 15 साल के शासन का अंत हुआ और कांग्रेस ने 68 सीटें जीतकर सरकार बनाया था। 2023 के चुनाव में भाजपा ने अपनी गलती सुधारी और आदिवासी बेल्ट पर फोकस करते हुए प्रचार किया।
छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं जिनमें से नौ पर भाजपा का कब्जा है। वोटर के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ में 34 फीसदी आदिवासी वोटर हैं। खासकर बस्तर और सरगुजा के इलाकों में आदिवासी समुदाय निर्णायक है। बस्तर, कांकेर, सरगुजा और रायगढ़ आदिवासी आरक्षित लोकसभा सीटें हैं। बस्तर पर कांग्रेस जबकि तीन अन्य पर भाजपा काबिज है। अब भाजपा लोकसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित सभी सीटों पर कब्जा जमाना चाहती है। भाजपा इस जमीनी स्थिति से भी वाकिफ है कि आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ ही नहीं झारखंड और मध्य प्रदेश समेत देश के अन्य हिस्सों में उसे भारी मदद पहुंचा सकता है। यही वजह है कि उसने साय पर दांव लगाया है।