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उत्तराखंड: हिंसक पशुओं से रक्षा की मांग करना क्या ग़लत है?

देश भर में जंगली पशुओं विशेष रूप से शेर और बाघ के संरक्षण के लिए नेशनल पार्क बनाए जा रहे हैं। मध्य प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा और उत्तराखंड में ऐसे अनेक पार्क हैं और ढेरों निर्माणाधीन हैं। विलुप्त होते जंगली पशुओं के संरक्षण से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन समस्या तब आती है जब ये इंसानों की कीमत पर किए जाते हैं। इन संरक्षित वनों से पशु  विशेष रूप से बाघ-चीते और शेर इन संरक्षित वनों से निकल कर इधर-उधर ग्रामीण आबादी में जाकर उनके पशुओं तथा इंसानों पर हमला करते हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकारों द्वारा ऐसी व्यवस्था नहीं की जा सकती कि ये संरक्षित जंगली जानवर भी बचे रहें और अगल-बगल बसी इन नागरिक आबादी पर भी इनका कोई असर न पड़े। इन नेशनल पार्कों से संबंधित राज्य सरकारों को पर्यटकों से अकूत धन राशि प्राप्त होती है परन्तु वे नागरिकों की सुरक्षा के प्रति अपनी आंखें मूंदे रहते हैं। 

उत्तराखंड के रामनगर नैनीताल में स्थित कार्बेट नेशनल पार्क इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। पिछले बीस वर्षों से यहां पर 6 हजार से अधिक लोग जंगली जानवरों का शिकार हो चुके हैं। वहां पर रहने वाले एक ग्रामीण ने बताया कि हर माह क़रीब 10-12 लोगों पर बाघ के हमले होते हैं जिसमें से कम से कम 5-6 लोगों की मौत हो जाती है। बाघ के सबसे अधिक शिकार खेतों में काम कर रहे किसान या स्कूल जा रहे बच्चे होते हैं इसको लेकर वहां की स्थानीय जनता लम्बे समय से आंदोलित रही है। इसी क्रम में उत्तराखंड के अनेक जनपक्षधर सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने मिलकर इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया तथा जानवरों से इंसानों फ़सलों और मवेशियों की सुरक्षा तथा मुआवज़े आदि मांगों को लेकर ग्रामीणों तथा संघर्ष समिति के लोगों ने ठेलारेंज कार्यालय समक्ष धरना दिया और कार्बेट नेशनल पार्क के ठेला-झिरना जोन में पर्यटकों की आवाजाही ठप कर दी।

समस्याओं का‌ समाधान न किए जाने पर 21दिसम्बर को वन परिसर रामनगर में धरने की घोषणा हुई तथा यह चेतावनी दी गई,कि 9 दिन बाद मांग पूरी न होने पर वे जिम कार्बेट नेशनल पार्कों में पर्यटकों की आवाजाही को पूरी तरह से बंद कर देंगे। परन्तु आश्वासन के बावज़ूद प्रशासन ने ग्रामीणों की समस्याओं के निराकरण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसलिए संघर्ष समिति ने कॉर्बेट नेशनल पार्क के ढेला और झिरना जोन में 31 दिसंबर को पर्यटकों की आवाजाही पूर्णतया बंद करने का ऐलान किया था। जहां एक बार फिर भाजपा सरकार ने दमन का सहारा लिया। गिरफ्तारियां हुईं लेकिन व्यापक विरोध को देखते हुए बाद में निजी मुचलके पर सभी रिहा हुए।

आंदोलन की रणनीति के तहत सुबह ही भारी संख्या में विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों ने पर्यटकों की आवाजाही रोक दी। इस बीच भारी पुलिस बल ने आंदोलनकारियों के साथ ज़बरदस्ती की। महिलाओं तक को घसीटा और उन्हें गिरफ़्तार करके एसडीएम कार्यालय पहुंचा दिया। इस बीच गिरफ़्तार होने की खबर सुनकर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के नेता प्रभात ध्यानी ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी। इसके बाद उन्हें भी गिरफ़्तार कर लिया गया। आंदोलन की रणनीति के तहत दूसरे चक्र में पुनः भारी संख्या में लोग पर्यटकों की आवाजाही रोकने पहुंच गए। पुलिस द्वारा भारी बल प्रयोग के साथ 11 लोगों को पुनः गिरफ़्तार कर लिया।

हिरासत में लिए गए 31 आंदोलनकारियों के ख़िलाफ़ धारा 144 के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज कर सीआरपीसी की धारा 107/16 के तहत शांति भंग की कार्रवाई की गई। इधर पूरे दिन चल रही धींगा-मुश्ती के दौरान गुस्साए ग्रामीणों का प्रदर्शन भी चलता रहा। हालांकि इस दौरान प्रशासनिक स्तर पर फिर से वार्ता की नौटंकी हुई जिसका कोई भी समाधान नहीं निकल सका। अंततः लोगों का रोष देखकर सभी गिरफ़्तार आंदोलनकारी को निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया। आंदोलनकारी नेताओं ने अपना आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया।

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