आंकड़ों के साथ समझिए बिलासपुर संभाग का समीकरण
रायपुर । छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के चुनाव के लिए 17 नवंबर को मतदान है. 4 संभाग के 70 सीटों पर मतदान होगा. बिलासपुर संभाग के 24 सीटों का समीकरण इस रिपोर्ट में आंकड़ों के साथ समझिए. बिलासपुर संभाग कांग्रेस और भाजपा को बसपा, जोगी कांग्रेस और आप से कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.2018 के चुनाव में कांग्रेस को संभाग की 24 सीटों में 12 में जीत मिली थी, जबकि भाजपा को 7 सीटों पर, वहीं जोगी कांग्रेस को 3 और बसपा को 2 सीटों पर जीत मिली थी.सामाजिक समीकरणों की बात करें तो 24 में से 5 अनुसूचित जनजाति वर्ग, 4 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सीटें आरक्षित हैं. शेष 15 अनारक्षित सीटों में –
कांग्रेस से 7 ओबीसी वर्ग में ( 2 कुर्मी, 2 अघरिया, 2 साहू, 1 यादव और 1 पनिका समाज से) हैं. सामान्य वर्ग में ( 2 ठाकुर, 1 लाला, 1 बनिया, 1 ब्राम्हण, 1 मारवाड़ी, 1 आदिवासी ) हैं.
भाजपा से ओबीसी वर्ग में ( 3 कुर्मी, 1 अघरिया, 1 देवांगन, 1 मरार, 3 साहू ) हैं. सामान्य वर्ग ( 4 ठाकुर, 1 ब्राम्हण, 1 मारवाड़ी ) हैं.
लैलूंगा ( एसटी आरक्षित सीट ) – भाजपा और कांग्रेस दोनों बदला चेहरा, महिला उम्मीदवारों में मुकाबला
इस सीट पर इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने चेहरा बदल दिया है. इस बार यहां मुकाबला महिला उम्मीदवारों में है. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक चक्रधर सिंह सिदार को बदलते हुए विद्यावती सिदार को उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने 2018 में चुनाव हारने वाले सत्यानंद राठिया की जगह पूर्व विधायक सुनीति राठिया पर भरोसा जताया है.
विशेष बात- विद्यावती सिदार राजनीतिक परिवार से आती हैं. ससुर प्रेम सिंह सिदार तीन बार विधायक रह चुके हैं. विद्यावती भी पहले जनपद सदस्य रह चुकी हैं. जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी सुनीति राठिया 2013 में विधायक रह चुकी हैं. दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. 2018 में चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला था.
2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी चक्रधर सिंह सिदार ने भाजपा प्रत्याशी सत्यानंद राठिया को 24 हजार 483 वोटों से हराया था. सिदार को 81770 और राठिया को 57287 वोट मिले थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 13 में भाजपा और 2008 और 13 में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक बराबरी का मुकाबला है.
रायगढ़ विधानसभा ( अनारक्षित सीट ) – भाजपा ने चेहरा बदला, मुकाबला अघरिया बनाम अघरिया
इस सीट पर भाजपा ने अपना चेहरा बदला है. भाजपा ने यहां से 2018 में खरसिया सीट चुनाव हार चुके रिटायर्ड आईएएस ओपी चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने विधायक प्रकाश नायक फिर से भरोसा जताया है.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी ओ.पी. चौधरी भूतपूर्व कलेक्टर हैं. दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 2018 में खरसिया सीट से हार गए थे. इस बार सीट बदलकर रायगढ़ से लड़ रहे हैं. प्रदेश संगठन महामंत्री हैं. डॉ. रमन सिंह के करीबी हैं. अमित शाह के विश्वास पात्र हैं. ओबीसी वर्ग के बड़े नेताओं में से एक हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश शक्रजीत नायक से मुकाबला है. प्रकाश नायक पहली बार के विधायक हैं, दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. पिता स्व. शक्रजीत नायक जोगी सरकार में मंत्री रहे हैं. पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं. वैसे इस चुनाव से पहले तक इस सीट पर ओबीसी और सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों के बीच मुकाबला होता रहा है. लेकिन वर्तमान में दोनों प्रत्याशी न सिर्फ ओबीसी वर्ग हैं, बल्कि एक ही समाज से भी हैं.
2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश नायक ने भाजपा प्रत्याशी रोशन अग्रवाल को 14 हजार 580 वोटों से हराया था. नायक को 69062 वोट और अग्रवाल को 54482 वोट मिले थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 13 में भाजपा और 2008 और 18 में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक ओपी यहां बाजी पलट सकते हैं.
सारंगगढ़ (एससी आरक्षित सीट ) – भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में जांगड़े बरकरार
अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. महिला मोर्चा की मंडल अध्यक्ष शिवकुमारी चौहान को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में केरा बाई मनहर चुनाव लड़ीं थी. वहीं कांग्रेस में विधायक उत्तरी जांगड़े पर भरोसा बरकरार है.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी शिवकुमार चौहान पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. पूर्व में जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं. गौ-सेवा समिति का संचालन करती हैं. सामाजिक रूप से सक्रिय हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी उत्तरी जांगड़े दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. विवादों से दूर रही हैं. समाज में सक्रिय हैं. वैसे इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभाव अधिक है. 2003 में बसपा से कामदा जोल्हे विधायक रह चुकी हैं. वहीं इस सीट पर महिलाओं का ही दबदबा रहा है.
2018 का आंकड़ा- उतरी जांगड़े ने केरा बाई मनहर को 52 हजार 389 मतों के भारी अंतर से हराया था. जांगड़े को 101834 और मनहर को 49445 वोट मिले थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस, 1 बार भाजपा और 1 बार बसपा को जी मिली है. 2008 और 18 में कांग्रेस, 2003 में बसपा और 2013 में भाजपा.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांग्रेस का पलड़ा भारी है.
खरसिया ( अनारक्षित सीट )- भाजपा ने बदला चेहरा, पटेल और साहू में मुकाबला
कांग्रेस का अभेद्य गढ़ है खरसिया. इस सीट पर पहले चुनाव से लेकर 2018 तक भाजपा कभी जीत नहीं पाई. इस सीट पर भाजपा हर बार चेहरा बदलती रही, लेकिन सफलता नहीं मिली. भाजपा ने इस बार चेहरा बदला है. भाजपा ने यहां महेश साहू को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में इस सीट ओपी चौधरी चुनाव लड़े थे. वहीं कांग्रेस ने मंत्री उमेश पटेल पर ही भरोसा जताया है.
विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी उमेश पटेल दो बार के विधायक और मंत्री हैं. तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. पिता स्व. नंदकुमार पटेल की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं. खरसिया सीट पर भाजपा आज तक चुनाव नहीं जीत पाई है. अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं. उमेश पटेल का भाजपा प्रत्याशी महेश साहू से मुकाबला है. महेश साहू पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा ने साहू वोटरों को साधने की कोशिश की है. सबसे अधिक इस सीट में अघरिया समाज है, उसके बाद साहू समाज है. महेश साहू समाज के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं.
2018 का आंकड़ा- उमेश पटेल ने ओपी चौधरी को 16 हजार 967 वोटों से हराया था. उमेश पटेल को 94201 और ओपी चौघरी को 77234 वोट मिले थे.
राज्य बनने के बाद हुए बीते चार चुनावों में कांग्रेस ही जीती है.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक उमेश पटेल बाजी मार सकते है.
धरमजयगढ़ ( एसटी आरक्षित सीट)- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस को मौजूदा विधायक पर भरोसा
इस सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने हरीशचंद्र राठिया को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में भाजपा से लीनव बिरजू राठिया चुनाव लड़ थे. वहीं कांग्रेस ने मौजूदा विधायक लालजीत सिंह राठिया पर ही फिर से भरोसा जताया है.
विशेष बात- लालजीत सिंह राठिया लगातार दो बार के विधायक हैं. तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. जनता के बीच में बेहद लोकप्रिय हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी हरीशचंद्र दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं. पंच बनने के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
2018 का आंकाड़ा- लालजीत सिंह ने लीनव बिरजू को 40 हजार 335 वोटों से हराया था. लालजीत को 95173 और लीनव बिरजू को 54838 वोट मिले थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा और 2013 और 18 में कांग्रेस
स्थानीय जानकारों के मुताबिक लालजीत सिंह मजबूत हैं.
रामपुर ( एसटी आरक्षिट सीट)- कांग्रेस ने बदला चेहरा, भाजपा ननकी राम भरोसे
इस सीट पर कांग्रेस ने चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने जोगी कांग्रेस से 18 में चुनाव लड़ चुके फूल सिंह राठिया को उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा अभी ननकी राम के ही भरोसे है.
विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह राठिया 2018 में जोगी कांग्रेस चुनाव लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी श्यामलाल कंवर तीसरे पर रहे थे. वहीं भाजपा प्रत्याशी छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ विधायकों में से एक हैं. 70 के दशक से राजनीति में हैं. 6 बार के विधायक हैं.
2018 का आंकड़ा- ननकी राम कंवर ने फूल सिंह राठिया को 18 हजार 175 वोटों से हराया था. भाजपा प्रत्याशी ननकी राम को 65048, जोगी कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह को 46873 और कांग्रेस प्रत्याशी श्यामलाल को 44041 वोट मिले थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 18 में भाजपा और 13 में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक फूलसिंह राठिया बाजी पलट सकते हैं.
कोरबा ( अनारक्षित सीट )- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में जय ही सिंह
इस सीट पर भाजपा ने फिर से चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने यहां पूर्व महापौर लखन देवांगन को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में विकास महतो चुनाव लड़े थे. वहीं कांग्रेस में जय हीं सिंह बने हुए हैं. मंत्री जय सिंह अग्रवाल बर कांग्रेस का भरोसा बरकरार है.
विशेष बात- जय सिंह अग्रवाल लगातार तीन बार के विधायक हैं. चौथी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. कोरबा क्षेत्र प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे हैं. अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं. कांग्रेस के ताकतवर नेताओं में से एक हैं. सामान्य वर्ग से हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी लखन देवांगन तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 2013 में कटघोरा से विधायक रह चुके हैं. 2018 मे कटघोरा से ही हार गए थे. विधायक रहने से पूर्व कोरबा नगर निगम के महापौर रहे हैं. सौम्य छवि के नेता माने जाते हैं. ओबीसी वर्ग से हैं.
2018 का आंकड़ा- जय सिंह अग्रवाल ने विकास महतो को 11 हजार 806 वोटों से हराया था. अग्रवाल को 70119 और महतो को 58313 वोट मिला था.
राज्य बनने के बाद कोरबा में हुए तीनों ही चुनावों में कांग्रेस ही जीती है.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला बराबरी का है.
कटघोरा (अनारक्षित सीट) – भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में कंवर ही उत्तम
कटघोरा सीट अनारक्षित सीट है. लेकिन इस सीट पर आदिवासी वर्ग के विधायकों का ही वर्चस्व रहा है. इस सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने यहां से प्रेमचंद पटेल को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में लखन देवांगन लड़े थे. वहीं कांग्रेस ने मौजूदा विधायक पुरुषोत्तम कंवर पर ही भरोसा जताया है.
विशेष बात- कटघोरा सीट अनारक्षित सीट है. लेकिन इस सीट पर आदिवासी वर्ग के विधायकों का ही वर्चस्व रहा है. कांग्रेस के बोधराम कंवर यहां से 7 बार विधायक रहे हैं. अब उनके बेटे पुरुषोत्तम कंवर विधायक हैं. पुरुषोत्तम में दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा प्रत्यशी प्रेमचंद पटेल पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. प्रेमचंद ओबीसी वर्ग में मरार समाज से हैं. मरार समाज यहां प्रभावी भूमिका है.
2018 का आंकड़ा- पुरुषोत्तम कंवर ने लखनलाल को 11 हजार 511 वोटों से हराया था. कंवर को 59227 और लखनलाल को 47716 प्राप्त हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार कांग्रेस और 1 बार भाजपा जीती है. 2003, 08 और 18 में कांग्रेस और 13 में भाजपा.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा और कांग्रेस दोनों कांटे की टक्कर है.
पाली-तानाखार( एसटी आरक्षित सीट)- कांग्रेस ने बदला चेहरा, भाजपा को रामदयाल पर ही भरोसा
इस सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा विधायक मोहित राम केरकेट्टा को बदल दिया है. कांग्रेस यहां से दुलेश्वरी सिदार को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा को 2018 में चुनाव हार चुके रामदयाल उइके पर फिर से भरोसा जताया है.
विशेष बात- इस सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी प्रभाव रहा है. गोंगपा के हीरा सिंह मरकाम 1998 में यहां चुनाव जीत चुके हैं. 5 चुनाव में दूसरे नंबर पर रही गोंगपा. भाजपा बीते चुनाव में तीसरे पर रही थी. कांग्रेस प्रत्याशी दुलेश्वरी सिदार पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. पहले गोंगपा में रह चुकी हैं. गोंड समाज की गुरुमाता हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी रामदयाल उइके एक बार भाजपा और तीन बार कांग्रेस विधायक रहे हैं. 2018 में भाजपा में लौटे थे. चुनाव हार गए थे.
2018 का आंकड़ा- मोहित राम केरकेट्टा ने हीरा सिंह मरकाम को 9 हजार 656 वोटों से हराया था. केरकेट्टा को 66971, मरकाम 57315 और उइके को 321155 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चारों ही चुनावों में कांग्रेस जीती है.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांग्रेस का पलड़ा भारी है.
मरवाही (एसटी आरक्षित सीट)- भाजपा ने बदला चेहरा, पूर्व सैनिक और डॉक्टर में मुकाबला
इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदला है. भाजपा ने पू्र्व सैनिक प्रणव कुमार मरपच्ची को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में अर्चना पोर्तें चुनाव लड़ी थीं. 2018 में जोगी कांग्रेस अजीत जोगी जीते थे. उनके निधन के बाद 2020 में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस से डॉ. केके ध्रुव जीतकर विधायक बने थे. विधायक ध्रुव को कांग्रेस ने फिर से उम्मीदवार बनाया है.
विशेष बात- मरवाही स्व. अजीत जोगी का क्षेत्र है. अजीत जोगी यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. 2013 में अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी भी जीते थे. जाति विवाद में जोगी परिवार के फंसने के बाद आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने से वंचित रह गए हैं. कांग्रेस प्रत्याशी ध्रुव दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. मरवाही में बीएमओ रह चुके हैं. भाजपा प्रत्याशी प्रणव कुमार भारतीय सेना के रिटायर्ड सैनिक हैं. सरपंच रह चुके हैं. जोगी कांग्रेस से 2018 में कांग्रेस चुनाव लड़ चुके गुलाब राज प्रत्याशी हैं.
2018 का आंकड़ा- स्व. अजीत जोगी ने अर्चना पोर्ते को 46 हजार 462 वोटों से हराया था. कांग्रेस तीसरे पर रही थी. जोगी को 74041 और पोर्ते को 27579 मत प्राप्त हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार मुख्य चुनाव और 1 उपचुनाव में 3 बार कांग्रेस और 1 जोगी कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 13 कांग्रेस और 2018 में जोगी कांग्रेस, 2020 उपचुनाव में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी मजबूत हैं.
कोटा (अनारक्षित सीट)- कांग्रेस और भाजपा दोनों बदला चेहरा, जोगी कांग्रेस से डॉ. रेणु जोगी
इस सीट पर 2006 उपचुनाव से डॉ. रेणु जोगी का कब्जा बरकरार है. वैसे इस सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. अधिकतर चुनावों में कांग्रेस ही जीती है. कांग्रेस और भाजपा ने दोनों ने यहां चेहरा बदला है. कांग्रेस ने 2019 में लोकसभा चुनाव हारने वाले अटल श्रीवास्तव को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा से स्व. दिलीप सिंह जूदेव के बेटे प्रबल प्रपात सिंह जूदेव प्रत्याशी हैं. जबकि जोगी कांग्रेस विधायक डॉ. रेणु जोगी फिर से मैदान में हैं.
विशेष बात- इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है. स्व. अजीत जोगी की पत्ती और जोगी कांग्रेस विधायक डॉ. रेणु जोगी इस सीट से एक बार फिर चुनाव लड़ रही हैं. डॉ. रेणु जोगी 2006 उपचुनाव जीतने के बाद से ही इस सीट लगातार चार बार से विधायक हैं. 5वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही हैं. 2009 लोकसभा चुनाव दिलीप सिंह जूदेव से हार गईं थी. वहीं
भाजपा प्रत्याशी प्रबल प्रताप सिंह जूदेव इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. प्रबल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. पिता स्व. दिलीप सिंह जूदेव की राजनीतिक विरासत के सहारे राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव भी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. भूपेश बघेल के करीबी हैं. बिलासपुर के रहने वाले हैं.
2018 का आंकड़ा- डॉ. रेणु जोगी ने काशीराम साहू को 3 हजार 26 वोटों से हराया था. कांग्रेस प्रत्याशी विभोर सिंह तीसरे नंबर रहे थे. डॉ. जोगी को 48800 और काशीराम को 45774 वोट प्राप्त हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार कांग्रेस और 1 जोगी कांग्रेस जीती है. 2003, 08,13 में कांग्रेस और 2018 में जोगी कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक जोगी कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रेणु जोगी मजबूत हैं.
लोरमी ( अनारक्षिट सीट)- भाजपा और कांग्रेस दोनों चेहरा बदला, भाजपा अध्यक्ष प्रतिष्ठा दांव पर
इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने यहां से प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में तोखन साहू चुनाव लड़ थे. कांग्रेस ने थानेश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में सोनू चंद्राकर चुनाव लड़े थे. जोगी कांग्रेस से धर्मजीत सिंह लड़े थे और जीते थे.
विशेष बात- भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव की प्रतिष्ठा दांव पर है. पहली बार के सांसद अरुण साव पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. लोरमी गृह क्षेत्र है. कांग्रेस प्रत्याशी थानेश्वर साहू भी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. मुख्यमंत्री बघेल के करीबी है. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हैं. सागर सिंह बैस कांग्रेस बगावत कर जोगी कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस में जिलाध्यक्ष रहे हैं.
2018 का आंकड़ा- जोगी कांग्रेस प्रत्याशी धर्मजीत सिंह ने भाजपा के तोखन साहू को 25 हजार 553 वोटों से हराया था. धर्मजीत सिंह को 67742 और तोखन साहू को 42189 वोट हासिल हुआ था. कांग्रेस प्रत्याशी सोनू चंद्राकर तीसरे नंबर रहे थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस, 1 बार भाजपा, 1 बार जोगी कांग्रेस जीती है. 2003 और 8 में कांग्रेस, 2013 में भाजपा और 2018 में जोगी कांग्रेस
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला त्रिकोणीय है.
मुंगेली ( एससी आरक्षित सीट) – कांग्रेस ने बदला चेहरा, भाजपा अजेय योद्धा मोहिले
इस सीट पर कांग्रेस ने चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने 2018 में चुनाव लड़ने वाले राकेश पात्रे की जगह संजीत बनर्जी को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा से अजेय योद्धा पुन्नूलाल मोहिले उम्मीदवार हैं.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी पुन्नूलाल मोहिले अजेय योद्धा हैं. सरपंच लेकर विधायक और सांसद तक बने, लेकिन एक चुनाव नहीं हारे. 4 बार सांसद और 6 बार के विधायक हैं. एससी वर्ग के सबसे मजबूत नेताओं में से एक हैं. रमन सरकार में मंत्री रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी संजीत बनर्जी से मुकाबला है. संजीत पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. जनपद पंचायत के अध्यक्ष हैं. जोगी कांग्रेस रूपलाल कोसरे कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं.
2018 का आंकड़ा- पुन्नूलाल मोहिले ने राकेश पात्रे को 8 हजार 487 वोटों से हराया था. मोहिले को 69469 और पात्रे को 51982 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 1 बार कांग्रेस 3 बार भाजपा जीती है. 2003 में कांग्रेस और 2008, 13 और 18 में भाजपा.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी मोहिले मजबूत हैं.
तखतपुर (अनारक्षित सीट ) – भाजपा ने बदला चेहरा, मुकाबला ठाकुरों में
इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने जोगी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले विधायक धर्मजीत सिंह को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में हर्षिता पाण्डेय चुनाव लड़ीं थी. वहीं कांग्रेस ने विधायक रश्मि आशीष सिंह पर फिर से भरोसा जताया है.
विशेष बात- छत्तीसगढ़ की एक मात्र सीट है, जहाँ दो विधायक आमने-सामने लड़ रहे हैं. इस सीट पर राजपूत(ठाकुरों) का वर्चस्व रहा है. एक बार फिर ठाकुरों में सीधा मुकाबला है.
भाजपा प्रत्याशी धर्मजीत सिंह 6वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. चार बार के विधायक हैं. कांग्रेस छोड़ अजीत जोगी के साथ जोगी कांग्रेस में रहे अब भाजपा में हैं. 2018 में लोरमी से जोगी कांग्रे की टिकट पर लड़े और जीते थे. अब भाजपा की टिकट जिस सीट चार विधायक उसे छोड़ तखतपुर से लड़ रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी रश्मि सिंह से मुकाबला है. रश्मि सिंह पहली बार की विधायक हैं. दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं.
2018 का आंकड़ा- रश्मि सिंह ने जोगी कांग्रेस के संतोष कौशिक को 2 हजार 991 वोटों से हराया था. रश्मि सिंह को 52616 और संतोष कौशिक को 49625 वोट प्राप्त हुआ था. भाजपा प्रत्याशी हर्षिता पाण्डेय तीसरे नंबर पर रहीं थी.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 18 में कांग्रेस और 2008 और 13 में भाजपा.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा का पलड़ा भारी है.
बिल्हा (अनारक्षित सीट )- कांग्रेस ने बदला चेहरा, मुकाबला पुराने प्रतिद्वंदियों में
इस सीट पर कांग्रेस ने चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने 2018 में जोगी कांग्रेस चुनाव लड़ने वाले सियाराम कौशिक को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में कांग्रेस से राजेन्द्र शुक्ला चुनाव लड़े थे. भाजपा ने धरमलाल कौशिक पर फिर से भरोसा जताया है.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी धरमलाल कौशिक 6वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 3 बार विधायक रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और नेता-प्रतिपक्ष रह चुके हैं. डॉ. रमन सिंह के करीबी नेताओं में से एक हैं. ओबीसी वर्ग से हैं. कांग्रेस प्रत्याशी सियाराम कौशिक से मुकाबला है. सियाराम कौशिक 5वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. दो बार विधायक रह चुके हैं. अजीत जोगी के करीबी रहे हैं. 2018 में जोगी कांग्रेस चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे. जोगी के निधन के बाद कांग्रेस में लौट आए थे. ओबीसी वर्ग से हैं.
2018 का आंकडा- धरमलाल कौशिक ने राजेन्द्र शुक्ला को 26 हजार 524 वोटों से हराया था. कौशिक को 84431 और शुक्ला को 57907 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा, 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 13 में कांग्रेस, 2008 और 18 में भाजपा.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक बराबरी का मुकाबला है.
बिलासपुर ( अनारक्षित सीट)- पुराने चेहरों पर फिर से दांव, कौन बनाएगा रिकॉर्ड
इस सीट पर एक फिर कांग्रेस और भाजपा से वही चेहरे आमने-सामने, जो 2018 में चुनाव लड़ चुके हैं. कांग्रेस ने शैलेष पाण्डेय पर फिर से भरोसा जताया है, तो वहीं भाजपा ने अमर अग्रवाल को एक बार फिर मौका दिया है.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी अमर अग्रवाल 6वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 1998 से 2018 तक लगातर चार बार विधायक रहे. रमन सरकार में मंत्री रहे हैं. छत्तीसगढ़ में भाजपा के संस्थापक रहे स्व. लखीराम अग्रवाल के पुत्र हैं. कांग्रेस प्रत्याशी शैलेष पाण्डेय से मुकाबला है. शैलेष पाण्डेय पहली बार के विधायक हैं. दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. 2018 में अमर अग्रवाल को हरा चुके हैं. शिक्षा के क्षेत्र से राजनीति में आए हैं. राजनीतिक अनुभव कम है.
2018 का आंकड़ा- शैलेष पाण्डेय ने अमर अग्रवाल को 11 हजार 221 वोटों से हराया था. पाण्डेय को 67896 और अग्रवाल को 56675 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08, 13 में भाजपा और 2018 में कांग्रेस जीती है.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांटे की टक्कर है.
बेलतरा ( अनारक्षित सीट )- भाजपा और कांग्रेस दोनों बदला चेहरा, युवा नेताओं में मुकाबला
इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने विधायक रजनीश सिंह की जगह युवा नेता सुशांत शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने विजय केशरवानी को प्रत्याशी बनाया है.
विशेष बात – इस सीट को भाजपा का गढ़ कहा जाता है. यहां अधिकतर ब्राम्हण समाज से विधायक बनते रहे हैं. सुशांत शुक्ला पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. स्व. दिलीप सिंह जूदेव कट्टर समर्थक रहे हैं. वहीं विजय केशरवानी जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं. विजय केशरवानी भी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
2018 का आंकड़ा- भाजपा के रजनीश सिंह ने कांग्रेस के राजेन्द्र साहू को 6 हजार 259 वोटों से हराया था. रजनीश सिंह को 49601 और राजेन्द्र साहू को 43342 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में भाजपा ही जीती है.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा का पलड़ा भारी है.
मस्तूरी ( एससी आरक्षित सीट )- पुराने चेहरों में जंग, बसपा का भी गहरा रंग
इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के पुराने चेहरों के बीच ही मुकाबला है. लेकिन बसपा से भी एक पुराने दिग्गज चेहरे के आने के साथ मुकाबला और दिलचस्प हो गया है. भाजपा ने डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने दिलीप लहरिया को फिर से मौका दिया है. वहीं बसपा से दाऊराम रत्नाकर चुनाव मैदान में हैं.
विशेष बात- इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है. भाजपा प्रत्याशी डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी- पांचवीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 2013 में चुनाव हार गए थे. तीन बार के विधायक हैं. अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े नेताओं में से एक हैं. रमन सरकार पहले कार्यकाल में मंत्री रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी दिलीप लहरिया से मुकाबला है. दिलीप लहरिया तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. 2013 में डॉ. बांधी को हराकर विधायक बने थे. 2018 में डॉ. बांधी से ही चुनाव हार गए थे. प्रदेश के प्रसिद्ध लोक गायक हैं. वहीं बसपा प्रत्याशी दाऊराम रत्नाकर तीन बार विधायक रहे हैं. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं.
2018 का आंकड़ा- डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी ने बसपा प्रत्याशी जयेन्द्र सिंह पाटले को 14 हजार 107 वोटों से हराया था. बांधी को 67950 और पाटले को 53843 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 18 में भाजपा, 2013 में कांग्रेस जीती.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक डॉ. बांधी का पलड़ा अन्य प्रत्याशियों के मुताबिक भारी है.
अकलतरा (अनारक्षित सीट )- कांग्रेस बदला चेहरा, भाजपा सिंह बरकरार
इस सीट पर कांग्रेस ने चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने राघवेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है. भाजपा ने विधायक सौरभ सिंह पर ही भरोसा जताया है. वहीं जोगी कांग्रेस से ऋचा जोगी मैदान में हैं.
विशेष बात- सौरभ सिंह दो बार के विधायक हैं. पहली बार बसपा से विधायक बने थे. तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. युवा नेता हैं और क्षेत्र में लोकप्रिय हैं. राघवेन्द्र सिंह के दादा विधायक रहे हैं. पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. जिला कांग्रेस अध्यक्ष हैं. ऋचा जोगी 2018 में बसपा लडी थीं. इस बार जोगी कांग्रेस से लड़ रही हैं. स्व. अजीत जोगी की बहू हैं.
2018 का आंकड़ा- सौरभ सिंह ने ऋचा जोगी को 1 हजार 8 सौ 54 वोटों से हराया था. सौरभ सिंह को 60502 और ऋचा जोगी को 58648 वोट हासिल हुआ था. कांग्रेस के चुन्नीलाल साहू तीसरे नंबर रहे थे.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस, 1 बार बसपा और 1 बार भाजपा जीती है. 2003 और 13 में कांग्रेस, 2008 में बसपा और 2018 में भाजपा
स्थानीय जानकारों के मुताबिक सौरभ सिंह की स्थिति मजबूत है.
जांजगीर-चांपा ( अनारक्षित सीट )- कांग्रेस ने बदला चेहरा, भाजपा में चंदेल ही नारायण
इस सीट पर कांग्रेस ने चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने ब्यास कश्यप को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में मोतीलाल देवांगन चुनाव लड़े थे. भाजपा से नारायण चंदेल एक बार चुनाव मैदान में हैं.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी नारायण चंदेल विधानसभा नेता प्रतिपक्ष हैं. तीन बार के विधायक हैं. विधानसभा उपाध्यक्ष रह चुके हैं. जिले में कुर्मी समाज के बड़े नेता हैं. भाजपा संगठन के कई पदों पर रहे हैं. ओबीसी वर्ग से हैं. कांग्रेस प्रत्याशी ब्यास कश्यप से मुकाबला है. दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 2018 में बसपा से लड़े थे. राजनीति की शुरुआत भाजपा से की थी. टिकट नहीं मिलने पर बसपा में शामिल हो गए थे. अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. कुर्मी समाज से आते हैं. ओबीसी वर्ग से हैं.
2018 का आंकड़ा- नारायण चंदेल ने मोतीलाल देवांगन को 4 हजार 188 वोटों से हराया था. चंदेल को 54040 और देवांगन को 49852 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 13 में कांग्रेस, 2008 और 18 में भाजपा
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा मजबूत है.
सक्ती ( अनारक्षित सीट ) – भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में महंत
इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने यहां से पूर्व विधायक डॉ. खिलावन साहू को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस एक बार फिर डॉ. चरण दास महंत मैदान में हैं.
विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. चरण दास महंत विधानसभा अध्यक्ष हैं. चार बार विधायक और 3 बार सांसद रह चुके हैं. कबीरपंथी हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में गृह मंत्री रह चुके हैं. मनमोहन सरकार में केंद्रीय राजमंत्री रह चुके हैं. पिता स्व. बिसाहू दास महंत की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ रहे हैं. छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं.
भाजपा प्रत्याशी डॉ. खिलावन साहू से मुकाबला है. 2013 में विधायक रह चुके हैं. 2018 में टिकट नहीं मिली थी. दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. जिले में साहू समाज के बड़े नेता हैं. समाज सेवक रूप में जिले में चर्चित हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं.
2018 का आंकड़ा- डॉ. चरणदास महंत ने भाजपा के मेघाराम साहू को 30 हजार 46 वोटों से हराया था. डॉ. महंत को 78058 और साहू को 48012 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस और 2 भाजपा जीती है. 2003 और 13 में भाजपा, 2008 और 18 में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक डॉ. महंत का पलड़ा भारी है.
चंद्रपुर ( अनारक्षित सीट )- पुराने चेहरों में फिर जंग, यादव बनाम जूदेव
इस सीट पर 2018 में चुनाव लड़ चुके पुराने चेहरों की बीच फिर से जंग है. कांग्रेस विधायक रामकुमार पर फिर से भरोसा जताया है. वहीं भाजपा से संयोगिता युद्धवीर सिंह जूदेव को दोबारा मौका मिला है.
विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी संयोगिता युद्धवीर सिंह जूदेव जशपुर राजपरिवार की बहू हैं. चंद्रपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. 2018 में मामूली अंतरों से हार गईं थी. स्व. युद्धवीर सिंह जूदेव की पत्नी हैं. चुनाव हारने के बाद क्षेत्र के मतदाताओं के बीच सक्रिय हैं. कांग्रेस प्रत्याशी रामकुमार यादव से मुकाबला है. रामकुमार पहली बार के विधायक हैं. तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. पहले बसपा में रहे हैं. 2013 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस प्रवेश कर लिया था. गरीब और लोप्रोफाइल वाले विधायक हैं. ओबीसी वर्ग से आते हैं.
2018 का आंकड़ा- रामकुमार यादव ने बसपा की गीतांजलि पटेल को 4 हजार 418 वोटों से हराया था. रामकुमार को 51717 और गीतांजलि को 47299 वोट हासिल हुआ था. भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा, 1 बार एनसीपी और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2008 और 13 में भाजपा, 2003 में एनसीपी और 2018 में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला बराबरी का है.
जैजैपुर ( अनारक्षित सीट ) – कांग्रेस और भाजपा ने बदला चेहरा, बसपा से चंद्रा की चुनौती
इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों चेहरा बदल दिया है, लेकिन दोनों की चुनौती बसपा से दो बार के विधायक केशव चंद्रा से हैं. कांग्रेस ने बालेश्वर साहू को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में कांग्रेस अनिल चंद्रा चुनाव लड़े थे. वहीं भाजपा से कृष्णकांत चंद्रा प्रत्याशी हैं. 2018 में कैलाश साहू लड़े थे.
विशेष बात- जैजैपुर बसपा की सीट बन चुकी है. बीते दो चुनावों से लगातार बसपा के केशव चंद्रा जीत रहे हैं. केशव चंद्रा क्षेत्र में लोकप्रिय हैं. बालेश्वर और कृष्णकांत दोनों पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं टेकचंद्र चंद्रा कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी बालेश्वर साहू के खिलाफ बगावत कर जोगी कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
2018 का आंकड़ा- केशव चंद्रा ने भाजपा के कैलाश साहू को 21 हजार 687 वोटों से हराया था. चंद्रा को 64774 और साहू को 43087 वोट हासिल हुआ था. कांग्रेस तीसरे नंबर रही थी.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 1 बार कांग्रेस और 3 बार बसपा जीती है. 2003, 13 और 18 में कांग्रेस, 2008 में कांग्रेस.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक बसपा मजबूत है.
पामगढ़ ( एससी आरक्षित सीट ) – कांग्रेस और भाजपा दोनों ने बदला चेहरा, बसपा की चुनौती भारी
इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने संतोष लहरे को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में अंबेश जांगड़े चुनाव लड़े थे. वहीं कांग्रेस शेषराज हरबंश को प्रत्याशी बनाया है. 2018 में गोरेलाल बर्मन चुनाव लड़े थे. गोरेलाल अब कांग्रेस बगावत कर जोगी कांग्रेस चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि बसपा से विधायक इंदू बंजारे से सभी प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती मिल रही है.
विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी शेषराज हरबंश दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. 2013 में चुनाव हार चुकी हैं. भाजपा प्रताशी संतोष लहरे पहरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. जनपद अध्यक्ष रह चुके हैं. जांजागीर जिला एससी मोर्चा के अध्यक्ष हैं. जोगी कांग्रेस प्रत्याशी गोरेलाल बर्मन 2018 में कांग्रेस चुनाव हार चुके हैं. इंदू बंजारे बसपा से दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. क्षेत्र में लोकप्रिय हैं.
2018 का आंकड़ा- इंदू बंजारे ने गोरेलाल को 3 हजार 61 वोटों से हराया था. बंजारे को 50129 और बर्मन को 47068 वोट हासिल हुआ था.
राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार बसपा, 1 बार कांग्रेस और 1 बार भाजपा जीती है. 2003 कांग्रेस, 2008 और 18 बसपा और 2013 भाजपा.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक बसपा मजबूत है.