वैध कटाई से घट रहे पेड़, दुर्लभ होने लगा चार का फल, 40 लाख की चिरौंजी
कोरबा। जिले के वन क्षेत्रों में चार फल के पेड़ों में आ रही कमी के कारण अब चिरौंजी भी दुर्लभ उपज की श्रेणी में आने लगा है। 40 लाख की लागत से कोरबा वन मंडल कार्यालय परिसर में निर्मित चिरौंजी प्रसंस्करण केंद्र में इस वर्ष एक भी चार फल नहीं पहुंचा है। चार का दर राज्य सरकार ने 300 रूपये किलो निर्धारित किया है। इसके विपरीत खुले बाजार में 400 से 450 रूपये प्रति किलो दर से मांग होने के कारण संग्राहक समिति की जगह खुले बाजार में बिक्री कर रहे हैं।
शीतल पेय, मीठा सहित विभिन्न खाद्य सामानों का स्वाद बढ़ाने के लिए चिरौंजी उपयोग किया जाता है। खासतरौर पर मीठे में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। चिरौंजी ड्रायफूड की भी श्रेणी में है। यही वजह है कि 1500 से 1800 रूपये किलो बाजार में चल रहा। चार का संग्रहण अप्रैल और मई माह में होता है। जिले के दूरस्थ वन क्षेत्र लेमरू, पसरखेत, कोलगा, मदनपुर आदि क्षेत्रों में सघन पेड़ थे जो अब विरल होने लगे हैं।
इसकी प्रमुख वजह जंगल में हो रही अवैध कटाई को माना जा रहा। संख्या कम होने का सीधा असर उपज पर भी पड़ रहा है। एक समय था जब खुले बाजार में चार पुल खाने के लिए बिकता था। पके हुए चार फल को खाने का स्वाद अलग होता है। चार को सुखाकर चिरौंजी निकाली जाती है। वन मंडल कार्यालय परिसर में स्थित प्रसंस्करण केंद्र में चार का चिरौंजी निकालकर बाजार में बेजा जाता है ताकि संग्राहकों को सही दाम मिल सके।
राज्य वन संचालनालय की ओर से प्रति वर्ष वनोपज के तौर चार का एक निश्चित कीमत निर्धारित कर दिया जाता है। इस वर्ष 300 रूपये प्रति किलो दर निर्धारित किया गया था। यह बीते वर्ष की तुलना में 50 रूपये अधिक है। चार फल कम उत्पादन होेने के कारण खरीदारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। वनोपज के तौर पर चार पेड़ों की संख्या जंगल में लगातार कम हो रही है।
इमारती लकड़ी के तौर पर पेड़ों की मांग होने से अवैध कटाई को बढ़ावा मिला है। सरई, गुंजा, साजा जैसे पेड़ों की अपेक्षा चार पेड़ को तैयार होने में अधिक समय लगता है। वन मंडल की ओर से चार पेड़ की रोपणी नहीं के बतौर की जा रही है। यही वजह है कि चार की तादात में लगातार कमी आ रही है।
लिहाजा चिरौंजी दुर्लभ वनोपज में शामिल हो गया है। पेड़ों के संवर्धन में समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब चार पुल विलुप्त होने के कगार में आ जाएगा। चार संग्रहण नहीं होने की वजह से इन दिनों चिरौंजी प्रसंस्करण केंद्र में फूड प्रासेसिंग महुआ गोदाम बन कर रह गया है।
पेड़ों की तादाद कम होने के कारण चार के संग्रहण को लेकर संग्राहकों में प्रतिस्पर्धा की स्थिति बनी रहती है। चार को पूरी तरह पकने के पहले ही तोड़ लिया जाता है। जिन किसानों के खेतों में चार पेड़ हैं वे भी चोरी होने की आशंका से पकने से पहले ही तोड़ाई कर लेते हैं। अधपके चार से पर्याप्त मात्रा में चिरौंजी मिल पाना मुश्किल है। इन दिनों बाजार में बेहतर क्वालिटी के चिरौंजी की कीमत 1800 रूपये किलो है। शहरों के बजाए महानगरों में इसकी मांग अधिक होने से स्थानीय प्रसंस्करण केंद्रों से चार फल गायब हो गया है।