कार सेवा के दौरान मची भगदड़ तो सुरक्षा के लिए चढ़ गए थे पहाड़ पर
रायपुर। वर्ष 1992, दिसंबर माह में छत्तीसगढ़ से 60-70 लोग कारसेवा के लिए अय़ोध्या गए थे। इसमें बिलासुर के मदन दत्तात्रय होनप और उनके चाचा प्रकाश होनप भी शामिल थे। मदन दत्तात्रय होनप अपने मामा रायपुर निवासी परितोष डोनगांवकर के यहां पहुंचे हुए हैं। इस दौरान उन्होंने अयोध्या के गुंबद ढह जाने की आंखों देखी यादें ताजा कीं।
मदन दत्तात्रय होनव ने बताया कि लगभग मैं और मेरे चाचा प्रकाश होनप अयोध्या में थे। सुबह 11 बज चुके थे। अचानक खबर आई कि कुछ लोग विवादित ढांचे पर चढ़ गए। अब हमने अपने लिए सुरक्षित स्थान खोजा और भगदड़ से बचने के लिए पास के पहाड़ पर चढ़ गए। देखते ही देखते विवादित ढांचे का पहला, फिर दूसरा और आखिरी गुंबद भी ढह गया।
अयोध्या में विवादित ढांचे को ढहते हुए आंखों से देखने वाले शहर के मदन दत्तात्रय होनप ने बताया कि सभी आयोजकों के होश उड़ गए थे, अब क्या करें? रामलला तो खुले आकाश में आ गए थे। सभी ने मोर्चा संभाला। जगह को समतल किया गया। हमारी कारसेवा अब चालू हुई। हम सबने मिलकर भगवान के लिए एक टेंटनुमा मंदिर बनाया और उसमें उन्हें लाया गया। इसके बाद हम इलाहाबाद से कटनी होते हुए बिलासपुर पहुंच गए।
मदन दत्तात्रय होनप ने घटना का जिक्र करते हुए बताया कि इतने बरस बीत जाने के कारण दिन तो ठीक से याद नहीं रहा। सारनाथ एक्सप्रेस से हम 60-70 लोग और अय़ोध्या जा रहे थे। उस वक्त मुझे इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि वहां जाकर हम लोग विवादित ढांचा ढहाने के साक्षी होंगे।
बात उन दिनों की है, जब मैं 18 वर्ष का था और 12वीं कक्षा में विज्ञान का छात्र था। दिसंबर का महीना, मैंने अपने स्वजन से कहा मुझे भी अय़ोध्या जाना है। मेरी जिद देखकर मेरे चाचा भी मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो गए। इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) पहुंचने के बाद हमें बोला गया कि आप लोग अयोध्या मत जाइए, वहां पर पैर रखने की भी जगह नहीं है। आप सब यही से कारसेवा कर लीजिए और अपने घर लौट जाइये।
मदन दत्तात्रय होनप ने आगे बताया कि इसके बाद शाम को हम सब रेलवे स्टेशन पहुंचे। सरयू एक्सप्रेस तो कारसवेकों से भरी पड़ी थी। दौड़ते-भागते रेल के सबसे आखिरी डिब्बे में हम दोनों जैसे- तैसे चढ़ गए। सिर्फ खड़े होने की जगह थी, ट्रेन में चढ़े सभी लोग कारसेवक थे। “जय श्रीराम बोलते- बोलते हम करीब रात 12- 1 अयोध्या पहुंचे। हमारी व्यवस्था श्री कारसेवकपुरम में थी, बहुत बड़े मैदान में मध्यप्रदेश के लिए तंबू में हमें जगह मिल गई। मैं तो सुबह सात बजे उठकर अयोध्या भ्रमण के लिए निकल पड़ा।
अयोध्या भ्रमण के समय जब ढांचे को देखा, तो पहली बार लगा बाबरी विवाद को राजनीतिक कारणों से कुछ ज्यादा बड़ा बना दिया है। एक बहुत ही अव्यस्थित-सा ढांचा था और वहां पर हमारे अराध्य रामजी थे। अयोध्या के लोगों के चेहरे पर एक अलग ही डर था। वहां के लोगों ने बताया कि पिछली कारसेवा के दौरान तो बहुत से कारसेवक तो जिंदा वापस ही नहीं लौटे। अयोध्यावासी बहुत से लोगों ने अपने घर की दीवारों पर गोलियों के निशान भी दिखाए।