दुनिया जहां

सुरंग से निकले मजदूरों ने बताईं अंदर की बातें

उत्तराखंड के उत्तरकाशी टनल में 17 दिन तक फंसे रहने के बाद मंगलवार को सभी मजदूर सकुशल बाहर आ गए। बेहद कठिन हालात में 400 घंटे तक मौत से लड़ने के बाद जब मजदूर बाहर निकले तो उनके चेहरे पर जीत की खुशी साफ नजर आई। सभी चेहरे पर मुस्कान लिए निकले। श्रमवीरों को अस्पताल जरूर भेजा गया है, लेकिन सभी पूरी तरह सुरक्षित हैं। बाहर निकलने के बाद कुछ मजदूरों ने अपने परिवारों के साथ संक्षिप्त बातचीत में अपनी आपबीती भी बताई है। 17वें दिन बाहर निकले बिहार के दीपक ने जब आपबीती सुनाई तो रुहें कांप उठी। उन्होंने कहा, ‘टनल में फंसने के शुरुआती पांच दिन तक हम सबने कुछ नहीं खाया-पीया। शरीर कांप रहा था और मुंह से ठीक से आवाज तक नहीं निकल रही थी। बाहर से संपर्क पूरी तरह टूट चुका था। सबकी आंखों के सामने मौत का मंजर दिखाई दे रहा था। बचना मुश्किल लग रहा था।’ दीपक ने कहा इसी तरह से दो दिन और दहशत में ही बीत गए। उन्होंने कहा, ‘सातवें दिन बाहर से कुछ ताजी हवा आई तो हौसला बढ़ा। इसके बाद पल-पल जूझते हुए समय बीत रहा था। जीने की उम्मीद तब दिखायी थी, जब बाहरी दुनिया से मोबाइल के माध्यम से संपर्क हुआ। सभी को लगने लगा कि बाहर से उन्हें बचाने के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं।’ मंगलवार को दीपक को टनल से निकलने के बाद एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे चिकित्सकों की निगरानी में रखा गया है। इसी बीच वहां मौजूद मामा निर्भय ने दीपक से बात कराई। दीपक ने कहा कि ऐसा लगा कि पुनर्जन्म इसी को कहते हैं। बताया कि 16 दिन तक टनल में कब दिन हुई और कब रात, यह समझ में नहीं आ रहा था। हर पल सिर्फ मां-बाप, भाई और गांव की याद आ रही थी। परिवार के बारे में सोचने पर घबराहट होती थी। दीपक ने बताया कि टनल में फंसे 41 मजदूरों में करीब आधा दर्जन को ही आपदा से निपटने की ट्रेनिंग मिली थी। उन्हें ही सबने मार्गदर्शक बना लिया। निकलने की बारी आई तो कहा गया कि जो मेट हैं वे बाद में निकलेंगे। लोगों का निकलना शुरू हुआ तो कलेजा बेतहाशा धड़कने लगा। एक-एक मजदूर बाहर जा रहे थे। इधर बचे दीपक में निकलने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसका नम्बर 19वें पर था। जब उसकी बारी आई और टनल से बाहर निकला तो बाहर जिंदगी मुस्कुराती खड़ी थी। दीपक की तरह ही 400 घंटे से अधिक समय तक सुरंग में मौत से लड़ने वाले विशाल ने कहा कि शुरुआती 12 घंटे तक वे बेहद डरे हुए थे। उन्हें लग रहा था कि अब मौत निश्चित है। लेकिन वक्त बीतने के साथ सभी ने एक दूसरे का हौसला बांधा। उत्तराखंड के ही रहने वाले पुष्कर ने कहा कि शुरुआती कुछ घंटे बेहद मुश्किल थे। फिर पाइप से खाना, ऑक्सीजन जैसी राहत दी जाने लगी तो हिम्मत लौटी। 17 दिनों में सुरंग के अंदर श्रमिकों का जीवन एक-एक पल आशा और निराशा के बीच झूलता रहा। ऐसे मौके पर सबसे उम्रदराज गबर सिंह नेगी साथी मजदूरों के लिए सबसे बड़ा मानसिक सहारा बनकर उभरे। बचाव अभियान के दौरान सीएम से लेकर अधिकारियों ने तक ने गबर सिंह के जरिए ही श्रमिकों से सम्पर्क बनाए रखा। अधिकारियों ने गबर सिंह की नेचुरल लीडरशिप की भी जमकर तारीफ की। गबर साइट पर बतौर फोरमैन काम कर रहे थे, जो हादसे से कुछ देर पहले ही सुरंग के अंदर गए थे। ऐसे कठिन हालात में गबर सिंह ने घबराने के बजाय अन्य फंसे श्रमिकों को एकत्रित कर हादसे की जानकारी दी।

पीएम मोदी ने गबर सिंह से कहा, ‘मैं तो तुम्हें तो विशेष रूप से बधाई देता हूं कि मुझे मुख्यमंत्री जीत बताते थे कि आप दोनों ने जो लीडरशिप दी और जो टीम स्प्रिट दिखाया। मुझे तो लगता है कि किसी यूनिवर्सिटी को एक केस स्टडी तैयार करना पडे़गा। कि गबर सिंह नेगी एक गांव का व्यक्ति, उसमें कौन सी क्वालिटी है कि उसने संकट के समय अपनी पूरी टीम को संभाला। लोकल होने की वजह से आप बहुत आसानी से समझा पा रहे थे।

Show More

Related Articles

Back to top button