जिस पत्थर को ‘देवता’ मान कर पूज रहे थे लोग, वो 7 करोड़ साल पुराने डायनासोर के अंडे निकले
कई बार जानकारी के अभाव में लोग ऐसे काम कर देते हैं, जिसकी सच्चाई सामने आने के बाद लोग हैरान हो जाते हैं. अभी हाल ही में मध्य प्रदेश के धार जिले के पाडल्या गांव में लोग सालों से एक गोलाकर पत्थर को पूज रहे थे. गांव वालों को लग रहा था कि ये किसी देवता के पत्थर हैं, मगर अब सच्चाई सबके सामने आई है तो लोग हैरान हो चुके हैं. दरअसल, जिसे देवता समझ कर पूज रहे थे वो डायनासोर का अंडा निकला. सबसे हैरान कर देने वाली बात ये है कि ये अंडे करीब 7 करोड़ साल पुराने हैं. दरअसल पाडल्या गांव के लोगों को ये अंडे करीब 17 साल पहले खेती के लिए खुदाई के दौरान मिले थे. वे इसे ‘भीलट बाबा’ मानकर पूजा करने लगे. पहले उन्होंने इस पर एक आकृति बनाई फिर पूजने लगे. गांव वालों के लिए ये भीलट बाबा काकड़ भैरव भी हैं. काकड़ मतलब खेत और भैरव देवता को कहा जाता है. एनडीटीवी की खास रिपोर्ट देखने के बाद आपको पूरी जानकारी मिलेगी.
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, लोग हर धार्मिक अनुष्ठान में इस पत्थर की पूजा करते हैं. स्थानीय ग्रामीण वेस्ता मंडलोई के मुताबिक गांव वाले न सिर्फ इस पत्थर को पूजते थे बल्कि बारिश के समय उसके सामने बकरा भी चढ़ाते थे. ग्रामीण इन अंडों को कुलदेवता मान रहे थे. खेड़ापूरा इलाके में भी इनकी पूजा होती थी. इसके अलावा पटेलपुरा में भी ऐसे अंडे मौजूद हैं. लेकिन कुछ ही दिनों पहले लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियो साइंस की टीम धार पहुंची तो पता चला कि ग्रामीण जिन गोलाकार पत्थरों की पूजा कर रहे हैं असल में वो करोड़ों साल पुराने डायनासोर के अंडे हैं. ये अंडे टिटानो-सौरन प्रजाति के डायनासोर के बताए जाते हैं और इनका व्यास करीब 18 सेंटीमीटर का है.इलाके के DFO एएस सोलंकी ने बताया कि साल 2011 में हमने एक डायनासोर पार्क बनाया था. जहां आसपास के इलाके से प्राप्त इस तरह के जीवाश्म को रखा जाता है. उन अंडों को हमलोगों ने सुरक्षित हमारे पार्क में रख लिया है. बता दें कि धार जिले के बाग इलाके में अबतक 256 अंडे मिल मिल चुके हैं. माना जाता है कि मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी में डायनासोर युग में धरती से लुप्त हो चुके इन प्राणियों की अच्छी-खासी संख्या थी. अहम ये है कि दशकों पहले मध्यप्रदेश के ही भेड़ाघाट में डायनासोर का पूरा साबूत कंकाल मिला था. जिसे फिलहाल मुंबई स्थित नेशनल म्यूजियम में रखा गया है.