सियासी गलियारा

लोकसभा चुनाव का घमासान…मिशन 29 के लिए भाजपा-कांग्रेस लगा रही पूरा जोर

नई दिल्ली/ भोपाल। 8 फरवरी को मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद निर्वाचन आयोग लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज कर देगा। इसको देखते हुए मिशन 29 (लोकसभा की सभी सीटें) के लिए भाजपा और कांग्रेस ने पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया है। भोपाल में रणनीति बनाने के बाद अब दोनों पार्टियां दिल्ली में मंथन करेंगी। जहां चुनावी रणनीति और प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगाई जाएगी। भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस की तरफ से मोर्चे पर सबसे आगे राहुल गांधी होंगे। यानी मिशन 29 के लिए मप्र में मोदी-राहुल आमने-सामने होंगे।

गौरतलब है कि मप्र की 29 लोकसभा सीटों में से 28 भाजपा के पास है। वहीं एक मात्र सीट छिंदवाड़ा ही कांग्रेस के कब्जे में है। विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिलने के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की नजर आदिवासी वोटर्स पर है। डॉ. मोहन यादव की लीडरशिप वाली भाजपा सरकार के साथ-साथ संगठन का फोकस आदिवासी वोट बैंक पर है। प्रदेश में आदिवासी वोटरों की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत के करीब है। यही वजह है कि सत्ताधारी भाजपा हो या विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ही आदिवासियों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा ने इस बार सभी 29 सीटों को जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए पार्टी ने रणनीति बनाकर काम करना शुरू कर दिया है। वहीं कांग्रेस भी इस बार बेहतर प्रदर्शन की आस लगाए हुए है।

 मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस, दोनों का फोकस आदिवासियों पर है। 29 में से छह लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित हैं। भाजपा जहां इन सभी सीटों पर अपना कब्जा बनाए रखने के प्रयास में है तो कांग्रेस विधानसभा चुनाव 2023 के परिणाम की रोशनी में तैयारी कर रही है। दरअसल, शहडोल और बैतूल में भाजपा तो धार, खरगोन और मंडला लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा की सुरक्षित सीटों में कांग्रेस आगे रही है। जबकि, रतलाम में बराबरी की स्थिति है। विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं ने किसी भी दल को एकतरफा मतदान नहीं किया था। भाजपा 47 में से 26 सीटें जीती थी तो कांग्रेस को भी 22 सीटें मिलीं। धार की पांच में से चार, खरगोन की पांच में से चार और मंडला की अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित पांच में से चार सीट कांग्रेस ने जीतकर बढ़त बनाई। जबकि, भाजपा शहडोल की सात में से छह और बैतूल की चार में से तीन सीट जीतकर आगे रही है। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस का फोकस आदिवासी मतदाताओं पर है। दोनों ही दलों के नेता आदिवासी मतदाताओं को साधने के प्रयास में जुटे हैं। हालांकि, भाजपा इसमें आगे नजर आती है। कमजोर मतदान केंद्रों पर बूथ सशक्तीकरण के लिए कार्यकर्ता घर-घर संपर्क करने जा रहे हैं तो गांव चलो अभियान में भी इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। उधर, कांग्रेस ने भी लोकसभा सीटें चिन्हित करके विधानसभा सम्मेलन के साथ अपने पक्ष में मतदान बढ़ाने पर काम प्रारंभ कर दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 फरवरी को मध्यप्रदेश दौरे पर आ सकते हैं। वे झाबुआ से लोकसभा चुनाव का बिगुल बजाएंगे। प्रदेश भाजपा ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। झाबुआ आदिवासी बहुल सीट है। ऐसे में विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा इस बार भी आदिवासी सीटों पर बढ़त की कोशिश में है। फरवरी के दूसरे हफ्ते से अमित शाह के साथ पार्टी के दूसरे दिग्गज चुनाव प्रचार के लिए पीएम आ सकते हैं। छिंदवाड़ा में जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह की सभाएं हो सकती हैं। मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटर्स की संख्या करीब 22 प्रतिशत है। प्रदेश की 29 सीटों में से 6 लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। फिलहाल सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। प्रदेश की 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व है। मध्य प्रदेश में कुल 78 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी वोटर किसी को जिताने-हराने की ताकत रखते हैं। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस उनको साधने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

वहीं, राहुल गांधी भी रतलाम या झाबुआ में आदिवासी न्याय सभा करेंगे। यह मार्च के दूसरे सप्ताह में प्रस्तावित है।  मार्च में राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के अंतर्गत रतलाम संसदीय क्षेत्र में आदिवासी न्याय सभा को संबोधित करेंगे। इसके लिए झाबुआ और रतलाम में से कोई एक स्थान तय होगा। पार्टी ने इसकी तैयारी प्रारंभ कर दी है। दरअसल, आदिवासी मतदाताओं का साथ भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए आवश्यक है। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 47 विधानसभा क्षेत्र सुरक्षित हैं। इनमें से सात सीटें रतलाम संसदीय क्षेत्र में आती हैं। इनमें से भाजपा और कांग्रेस ने तीन-तीन तो एक सीट भारत आदिवासी पार्टी ने जीती।

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