सफलता की कुंजी होती हैं कुछ आदतें
हर माता-पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर सफल बनें और जीवन में नई-नई उंचाइयां हासिल करें. इसके लिए पैरेंट्स क्या नहीं करते, बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाते हैं, ट्यूशन लगवाते हैं और नई-नई एक्टिविटीज और कलाएं सिखाने भी भेजते हैं. लेकिन, व्यक्ति को सफल उसकी आदतें बनाती हैं. बच्चों में छोटी उम्र से ही कुछ अच्छी आदतें हों तो बड़े होकर उन्हें सफलता की सीढ़ियां चढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. वहीं, सभी जानते हैं कि बुरी आदतें व्यक्ति को अर्श से फर्श पर लाने में देर नहीं लगातीं. यहां ऐसी कुछ अच्छी आदतों का जिक्र किया जा रहा है जो बच्चों को जीवन में सफलता पाने में मदद करती हैं और माता-पिता बच्चों को यह अच्छी आदतें सिखा सकते हैं.
बच्चों को सफल बनाने वाली आदतें
सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच या पॉजिटिव थिंकिंग किसी भी बड़ी से बड़ी चुनौती से निकलने में मदद करती है. जो व्यक्ति किसी भी चुनौती से लड़ सकता है वह सफलता से ज्यादा दूर नहीं रहता. बच्चों को सिखाएं कि किस तरह गिरकर भी उठा जा सकता है और कैसे पॉजिटिव रहकर मुश्किलों को हल किया जाता है.
सीखने की इच्छा
जिनमें सीखने की इच्छा होती है वे कभी आउटडेटेड नहीं होते. चाहे आगे चलकर कोई नौकरी करने भी लगें तो सीखने की इच्छा उन्हें अप-टू-डेट रखती है. नई-नई चीजें सीखने की लगन बच्चों को बचपन में भी बाकी सभी से आगे करती है और बड़े होकर भी भीड़ से अलग रखती है.
खुद पर फोकस करना
बच्चे अगर खुद पर फोकस करना, अपनी सफलता असफलता को आंकना और अपनी ग्रोथ को ध्यान में रखना सीखते हैं तो उन्हें बाकी लोगों से कोई मतलब नहीं रहता है. ऐसे बच्चे अपने स्किल सेट को तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही लगातार आगे बढ़ते रहते हैं और किसी से तुलना करने में वक्त जाया नहीं करते हैं.
फोन से ज्यादा किताबों से प्यार
आजकल सभी लोगों में एक समानता है कि सभी को फोन और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना आता है और एक असमानता है कि सब किताबें नहीं पड़ते हैं. कई बार जो जानकारी फोन से नहीं मिलती वो किताबों से मिल जाती है. वहीं, किताबें दिमागी कसरस की तरह होती हैं. इसीलिए बच्चों में किताबें (Books) पढ़ने की रूचि विकसित करना जरूरी है.
सेल्फ डिसिप्लिन की आदत
कई बार बच्चे को मार-पीटकर पढ़ने जरूर बैठा दिया जाता है लेकिन बच्चे को बेहतर तरह से तभी कुछ याद होता है या समझ आता है जब वह अपने मन से पढ़ने बैठता है. पढ़ने का, खेलने का या दोस्तों से बातें करने का समय बच्चे को खुद निकालना आना चाहिए. ऐसे में बच्चों में सेल्फ डिसिप्लिन की आदत होना जरूरी है.