महंगाई न बढ़ने की उम्मीद पर RBI ने बदला है रुख

मुम्बई: भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में हालिया बदलाव अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे घरेलू मुद्रास्फीति की उम्मीदों में आई नरमी अहम वजह रही है। भारतीय स्टेट बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय बैंक अब केवल वर्तमान आंकड़ों पर नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा को भांपकर फैसले ले रहा है। एसबीआई का कहना है कि नीति में नरमी की झलक दरअसल उन संकेतों की प्रतिक्रिया है, जो यह दिखाते हैं कि आम लोग अब कम मुद्रास्फीति की उम्मीद कर रहे हैं। इससे आरबीआई को विकास को बढ़ावा देने के लिए नीति में लचीलापन लाने का आधार मिला है।
एसबीआई ने 2018 से 2024 तक के पांच उदाहरणों का अध्ययन किया और पाया कि आरबीआई के रुख में बदलाव अक्सर मुद्रास्फीति की उम्मीदों के उतार-चढ़ाव से जुड़े रहे हैं। जब-जब उम्मीदें बढ़ीं, नीति सख्त हुई, और जब गिरावट आई, तब-तब RBI ने नरमी का रास्ता अपनाया है।
रिपोर्ट में कहा गया कि आरबीआई का हालिया नरम रुख घरेलू परिवारों की मुद्रास्फीति को लेकर आम परिवारों की उतरती उम्मीदों से जुड़ा है। अनुमान है कि अगले तीन महीनों में महंगाई दर लगभग 8.9 प्रतिशत के आस-पास रह सकती है। यह बदलाव केंद्रीय बैंक को ब्याज दरों में कटौती और विकास को समर्थन देने का अवसर देता है।
फरवरी 2025 तक रेपो दर में कुल 50 आधार अंकों की कटौती हो चुकी है। सार्वजनिक बैंकों ने जमा दरों में 6 बीपीएस की कमी की, विदेशी बैंकों ने 15 बीपीएस घटाया, जबकि निजी बैंकों ने हल्की बढ़त दर्ज की।
इसके बावजूद सभी बैंक समूहों में नई ऋण दरों ने आरबीआई की नीति का असर तेजी से दर्शाया। इससे स्पष्ट होता है कि नीति का प्रभाव सही दिशा में और समयबद्ध रूप से हो रहा है। इन सभी अंतरों के बावजूद, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, निजी बैंकों और अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए नए ऋणों पर भारित औसत उधार दरों (डब्ल्यूएएलआर) ने नीति दर में बदलावों का बारीकी से पालन किया है। इससे पता चलता है कि मौद्रिक नीति का समग्र संचरण प्रभावी और समय पर बना हुआ है। इस प्रकार एसबीआई रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि आरबीआई की नीति वास्तविक समय के विकास के प्रति उत्तरदायी और दूरदर्शी दोनों है, जिसका लक्ष्य मुद्रास्फीति नियंत्रण को आर्थिक विकास के साथ संतुलित करना है।