सियासी गलियारा

नाथ-दिग्गी की आखिरी परीक्षा, छिंदवाड़ा और राजगढ़ में कांग्रेस की साख दांव पर

भोपाल। मप्र की राजनीति के दो धाकड़ और बुजुर्ग नेताओं की 18वीं लोकसभा के चुनाव में आखिरी परीक्षा होगी। ये दोनों नेता मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और प्रदेश के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में अपना दम दिखाते रहते हैं। इनमें से एक हैं राजगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह और दूसरे हैं कमलनाथ। कमलनाथ छिंदवाड़ा में अपने पुत्र नकुलनाथ के लिए मैदानी मोर्चे पर हैं, तो दिग्विजय सिंह खुद  मैदान में। करीब 77 बसंत देख चुके इन दोनों नेताओं कि संभवत: यह राजनीति परीक्षा है। इस तरह छिंदवाड़ा और राजगढ़ में कांग्रेस की साख दांव पर है।
गौरतलब है कि मप्र सहित देशभर में कांग्रेस की साख लगातार गिर रही है। खासकर लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस की स्थिति और दयनीय हो जाती है। ऐसे में यह चुनाव भाजपा के दोनों दिग्गज नेताओं के लिए चुनौती भरा है। एक तरफ भाजपा प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। वहीं कांग्रेस के दोनों नेताओं के सामने कम से कम अपने प्रभाव वाली छिंदवाड़ा और राजगढ़ सीट पर जीतने की चुनौती है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में प्रदेश की एक मात्र छिंदवाड़ा सीट ही कांग्रेस के पास है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह  ने छिंदवाड़ा को लेकर भाजपा को लक्ष्य दिया था। इस पर कांग्रेस में तोड़-फोड़ हुई। अभी छिंदवाड़ा में कमलनाथ के पुत्र नकुल सांसद हैं। अब दिग्विजय की राजगढ़ सीट पर भी तोड़-फोड़ से लेकर अन्य पैतरें बढ़ सकते हैं। राजगढ़ में भाजपा सांसद रोडमल नागर हैं। पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी मोना सुस्तानी थीं, जो कुछ समय पूर्व भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। मोना को भी दिग्विजय खेमे का माना जाता था। राजगढ़ को दिग्विजय की परंपरागत सीट माना जाता है। उनका गहरा नेटवर्क है। ऐसे में भाजपा के लिए चुनौती बढ़ी है।

टिकट की घोषणा से पहले सक्रिय
छिंदवाड़ा सीट कमलनाथ का गढ़ है। इसको देखते हुए वे अपने पुत्र और सांसद नकुलनाथ के समर्थन में टिकट की घोषणा से पहले ही सक्रिय हो गए थे। वहीं दिग्विजय सिंह भी राजगढ़ में पहले ही सक्रिय हो गए थे। टिकट की घोषणा से पहले की पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा था की यह चुनाव उनके जीवन का आखिरी चुनाव हो सकता है, क्योंकि वे अब 77 साल के हो चुके है। इसलिए वे अब उनके आखिरी चुनाव के लिए समर्थन मांगेंगे। दिग्विजय सिंह के इस बयान के बाद से राजनीतिक हलको में चर्चा है कि क्या लोकसभा चुनावों के बाद उनका यह आखिरी चुनाव होगा? क्या दिग्वियज सिंह लोकसभा चुनाव बाद राजनीति से सन्यास लें लेंगे? राजगढ़ सीट दिग्विजय सिंह कि परंपरागत सीट रही है। वह 1984 से 1993 तक राजगढ़ सीट से सांसद रहे। वे मप्र के मुख्यमंत्री भी रहे। सिंह राधौगढ़ विधानसभा सीट से विधायक भी रहे है।

दिग्विजय पदयात्रा पर
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कितनी सीटेंगी जीतेगी, कितनी नहीं यह चुनाव परिणाम तय करेगा। लेकिन फिलहाल चर्चा पार्टी के दो बुजुर्ग नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की चुनाव में खासी सक्रियता की हो रही है। इत्तेफाक से दोनों नेता 77 साल के पड़ाव पर हैं और दोनों पूर्व मुख्यमंत्री है। इनमें से एक खुद लोकसभा प्रत्याशी हैं और पदयात्रा कर रहे हैं तो दूसरे बेटे के लिए चुनाव मैदान में पसीना बहा रहे हैं। दोनों नेताओं ने अंतिम चुनाव बताकर जनता के बीच इमोशनल कार्ड चल दिया है। चुनाव परिणाम जो भी आएं, लेकिन इतना तय है कि अगले चुनावों में ये दोनों नेता इतने सक्रिय नहीं दिखेंगे जितने आज हैं। पूर्व मुख्यंत्री दिग्विजय सिंह को कांग्रेस पार्टी ने मजबूरी में राजगढ़ सीट से प्रत्याशी बनाया है। पार्टी के आदेश पर दिग्विजय सिंह चुनाव मैदान में कूद पड़े। 1991 के बाद फिर से राजगढ़ से चुनाव मैदान में उत्तरे दिग्विजय सिंह ने चुनाव प्रचार का तरीका ही बदल दिया है। सैकड़ों गाड़ियों के काफिले से चलने की बजाए सैंकड़ों समर्थकों के साथ पदयात्रा कर जनता से जुड़ने की कोशिश की है। दिग्विजय ऐसे समय में पदयात्रा निकाल रहे हैं, जब आजकल चुनाव-प्रचार का मतलब गाड़ियों का काफिला हो गया है। कमलनाथ और दिग्विजय के राजनीति से सन्यास लेने के साथ ही मप्र में पुरानी पीढी लगभग खत्म हो जाएगी। दोनों नेताओं में काफी समानता है। दोनों लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। कमलनाथ 1997 में छिंदवाड़ा से लोकसभा उपचुनाव हारे तो दिग्विजय 2019 में भोपाल से लोकसभा चुनाव हारे। दोनों मप्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। दोनों आजादी के पहले के जन्मे है। दोनों मप्र कांग्रेस के मुखिया रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव बाद दोनों ही सक्रिय राजनीति से दूर हो सकते हैं।

बेटे से ज्यादा सक्रिय कमलनाथ
इधर, छिदवाड़ा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी बेटे नकुलनाथ के लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं। हालांकि जिस तरह से उनके समर्थक एक के बाद एक टूटकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। उससे कमलनाथ उतने ही कमजोर हो रहे हैं। अभी तक कमलनाथ समर्थक पूर्व विधायक कमलेश शाह और छिंदवाड़ा महापौर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कट्टर समर्थक दीपक सक्सेना ही कमलनाथ से दूर जा चुके हैं। पहले चरण के चुनाव से पहले कमलनाथ को और भी झटके लग सकते हैं। झटकों के बीच कमलनाथ ने भी इमोशनल कार्ड चल दिया है। उन्होंने कहा कि मैं अंतिम समय तक छिंदवाड़ा की जनता की सेवा करता रहूंगा। यह मेरा अंतिम चुनाव है और जनता मेरा साथ देगी।

राजगढ़ में घिरेंगे दिग्विजय
दिग्विजय की सियासी अहमियत प्रदेश सहित देश के स्तर पर है। इस कारण भी अब वे निशाने पर रहेंगे। हिन्दुत्व के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर निशाने पर रहते हैं। पिछली बार भोपाल लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर छाया रहा था। लोकसभा के चुनावी रण में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के उतरने के बाद भाजपा की व्यूहरचना में बदलाव आया है। अभी तक केवल पूर्व सीएम कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट को फोकस में रखकर भाजपा काम कर रही थी। अब दिग्विजय की राजगढ़ सीट भी सियासी निशाने पर आ गई है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने नए सिरे से रोडमैप को तय करने पर काम शुरू कर दिया है।

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