हार के बाद जीतना जरूरी है भूपेश के लिए…
राजनीति में जैसे एक जीत के बाद दूसरी जीत का बड़ा महत्व होता है वैसे ही एक बजी हार के बाद जीत का भी बड़ा महत्व होता है। दूसरी जीत से जहां प्रतिष्ठा दोगुनी बढ़ जाती है वहीं हार के बाद जीत से कम हुई प्रतिष्टा का भरपाई होती है। राज्य में राजनांदगाव, कांकेर व महासमुंद लोकसभा के लिए मतदान २६ अप्रैल को होना है।तीनों लोकसभा सीटों में कांंग्रेस के लिए व भूपेश बघेल केे लिए राजनांदगांव सीट सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा की सीट बन गई है। भाजपा की कोशिश है कि कांग्रेस और कोई सीट भले जीत जाए लेकिन राजनांदगाव की सीट जरूर हारनी चाहिए। क्योंकि भूपेश बघेल ही राज्य में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे हैं। भाजपा उनको राजनांंदगांव में हरा देती है तो यह भाजपा की बड़ी जीत होगी क्योंकि यह भूपेश बघेल की दूसरी हार होगी।
विधानसभा चुनाव तो वह बुरी तरह हार चुके हैं, इससे उनकी चुनाव जिताऊ नेता की छवि पर सवालिया निशान लग गया है।राज्य में १८ का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, राज्य में हुए सारे उपचुनाव व अन्य चुनाव भी भूपेश बघेल के नेतृत्व में जीता गया था,वह अपाराजेय नेता समझे जा रहे थे। उनकी छबि अपराजेय नेता की थी। मोदी,शाह व साय ने उनको जिस तरह विधानसभा चुनाव में हराया,वह भूपेश बघेल कभी भूल नहीं सकते।
इससे उनका प्रदेश में ही नहीं दिल्ली मेें भी राजनीतिक महत्व कम हो गया। भूपेश बघेल ने कोशिश की थी कि वह चुनाव लड़ने की जगह चुनाव प्रचास कर कुछ प्रत्याशियों को जिताकर अपने राजनीतिक महत्व को बनाए रखें। आलाकमान ने राजनांंदगाव से चुनाव लड़ने को कहकर उनकी उम्मीद पर पानी फेर दिया। इससे फिर एक बार उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। राज्य की राजनीति मं अपना मह्त्व बनाए रखने के लिए भूपेश बघेल के लिए राजनांदगाव का चुनाव अग्निपरीक्षा है। वह जीत जाते हैं तो उनका राजनीतिक महत्व बना रहेगा। माना जाएगा कि वह राज्य के प्रभावी नेता हैं। वह कहीं से भी चुनाव जीत कर पार्टी की सीट संख्या बढ़ा सकते हैं।अगर हार गए तो उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा खत्म हो जाएगी। काहे के बड़े कांग्रेस नेता न तो विधानसभा चुनाव जिता पाए और न ही एक लोकसभा सीट जीत सके।
इससे कांग्रेस को तो राज्य मेें बडा नुकसान होगा ही क्योंकि उसके पास फिर ऐसा कोई नेता नहीं होगा जो पार्टी को एकजुट कर भाजपा का मुकाबला कर सके। भूपेश बघेल राजनांदगाव हारते हैं तो भाजपा को यह फायदा होगा कि कांग्रेस का एक आक्रामक नेता की चुनौती खत्म हो जाएगी। इससे सीएम साय को चुनौती देने वाला कोई कांंग्रेसी नेता नहीं बचेगा और वह पांच साल बिना मजबूत विपक्ष के सरकार चला सकेंगे।