भारत

खालिस्तान नहीं तो फिर क्या चाहता था भिंडरावाले? जानें

बात सन 1947 की है, भारत ने अभी आजादी की सुबह अभी नहीं देखी थी। लेकिन ये तो तय हो चुका था कि अंग्रेजी हुकूमत भारत को दो हिस्सों में बांटकर जाने वाली थी। इसी साल 12 फरवरी को पंजाब स्थित मोगा जिले के रोडे गांव में एक बालक का जन्म होता है, जिसका नाम माता-पिता ने बड़े प्यार से जरनैल सिंह रखा। आगे चलकर इसके नाम में भिंडरावाले जोड़ दिया गया। इसके बाद जरनैल सिंह धर्म, राजनीति और अलगाववाद को मिक्स कर आतंकी गिरोह बनाया, जिसने भारत सरकार की जड़ हिला दी। पंजाब के अलगाववादियों में ‘भिंडरावाले’ कल्ट बन गया। भिंडरावाले के डेथ एनिवर्सरी विशेष में हम जानेंगे कि जरनैल सिंह को कैसे मिला भिंडरवाले नाम और कैसे इसने पूरे पंजाब में आराजकता फैलाई।

जरनैल सिंह जब सिख धर्म और ग्रंथों की शिक्षा देने वाली संस्था ‘दमदमी टकसाल’ का अध्यक्ष चुना गया तो उसके नाम के साथ भिंडरावाले जुड़ गया। जब वह अध्यक्ष चुना गया तो उसकी आयु 30 वर्ष थी। दमदमी टकसाल की कमान संभालते ही भिंडरवाले पंजाब में उथल-पुथल मचाने लगा। पैन पंजाब में भिंडरवाले मशहूर हो गया, खासकर अलगावादी व हिंसक किस्म के लोगों में खासा पापुलर हुआ। 13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच भिड़ंत हुई। इसमें 13 अकाली कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई।

भिंडरावाले ने शुरू किया पंजाब में तांडव

यहीं भिंडरवाले ने पंजाब में खालिस्तान को लेकर आवाज तेज होने लगीं। इन हजारों अलगाववादी आवाज के केंद्र में जरनैल सिंह भिंडरवाला था। निरंकारियों और अकालियों की हिंसक झड़प के खिलाफ रोष दिवस मनाया गया। इसमें भिंडरवाले ने भी हिस्सा लिया। यहीं भिंडरावाले ने पंजाब और सिखों की मांग को लेकर जगह-जगह भड़काऊ भाषण देने लगा। 80 के दशक की शुरुआत में पंजाब में हिंसक काफी बढ़ गईं, बड़े-बड़े लोग की हत्याएं हुईं।

1981 में पंजाब केसरी के संस्थापक व स्वतंत्रता सैनानी लाला जगत नारायण की हत्या हो गई। अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजी एएस अटवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके कुछ दिन बाद पंजाब रोडवेज की बस में घुसे बंदूकधारियों ने कई हिंदुओं को मार दिया। इन सब के तार कहीं न कहीं जरनैल सिंह से जुड़ रहे थे, लेकिन पर्याप्त सबूत न होने के कारण उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका। बढ़ती हिंसा के बीच इंदिरा गांधी ने पंजाब की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार

इसके बाद पंजाब में हिंसा और खालिस्तानी आतंकी जरनैल सिंह भिंडरवाले को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर ऑपरेशन ब्लू स्टार लांच किया गया। इस ऑपरेशन भनक लगते ही कई महीनों पहले भिंडरवाले ने अपने साथियों के साथ अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में छिप गया। उसको लगता था कि स्वर्ण मंदिर में सेना नहीं घुसेगी। इसकी वजह करोड़ों सिख लोगों की स्वर्ण मंदिर से जुड़ी आस्था थी, लेकिन लंबे इंतजार के बाद 1 जून को स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी शुरू कर दी गई। पंजाब में ट्रेनों का आवागमन रोक दिया गया, बस सेवाएं और दूर संचार सेवाएं रोक दी गईं। विदेशी मीडिया को पंजाब छोड़ने को कहा गया।

‘होने वाली थी खालिस्तान की घोषणा’

ब्लू स्टार सैन्य कमांडर मेजर जनरल केएस बराड़ के अनुसार, कुछ ही दिनों में खालिस्तान की घोषणा होने जा रही थी और उसे रोकने के लिए इस ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम देना जरूरी था। इसलिए तीन जून को पंजाब में कर्फ्यू की घोषणा की गई और 4 जून की शाम को सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी। अगले दिन सेना की बख्तरबंद गाड़ियां और टैंक भी स्वर्ण मंदिर पर पहुंच गए। भीषण खून-खराबा हुआ। 6 जून को भिंडरावाले को मार दिया गया। इस ऑपरेशन में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 83 सैनिक शहीद हुए थे और 249 घायल हुए थे। वहीं, 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए थे और 86 लोग घायल हुए थे। 1592 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

‘खालिस्तान नहीं चाहता था भिंडरावाले’

द स्टेट्समैन की रिपोर्ट के मुताबिक, भिंडरावाले के बड़े भाई हरजीत सिंह रोडे का कहना है कि भिंडरावाले ने कभी खालिस्तान की मांग नहीं की, लेकिन उसने कहा था कि अगर सरकार सिख समुदाय को तोहफे में खालिस्तान दे दे, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है।’ रिपोर्ट के अनुसार, भिंडरावाले का मकसद 1973 के आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव को लागू कराना था। ऐसा कहा जाता है कि भिंडरावाले की मौत और ऑपरेशन ब्लू स्टार के चलते खालिस्तान की मांग ने जोर पकड़ा था। रोडे ने कहा, ‘भिंडरावाले का केंद्र सरकार से कहना था कि क्या वे सिख को फर्स्ट क्लास सिटीजन समझेंगे और अगर हां, तो उन्हें ही उनका भविष्य तय करने दो।’ उन्होंने कहा कि भिंडरावाले पंजाब के लिए स्वायत्तता चाहते थे, खालिस्तान नहीं।

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव वर्ष 1973 में आनंदपुर साहिब में पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में पंजाब को एक स्वायत्त राज्य के रूप में स्वीकारने तथा केंद्र को विदेश मामलों, मुद्रा, रक्षा और संचार सहित केवल पाँच दायित्व अपने पास रखते हुए बाकी के अधिकार राज्य को देने संबंधी बातें कही गईं थी।

Show More

Related Articles

Back to top button