होलिका दहन का आयुर्वेद में है खास महत्व, जानें ऋषि मुनियों के विधान, होली खेलना क्यों जरूरी
होली का माहौल बन गया है. टांडा गड़ने को है. होली का धार्मिक महत्व तो है ही, आयुर्वेद इसका सेहत से संबंध बताता है. वो बदलते मौसम में होली के त्योहार को चुस्त-दुरुस्त करने का जरिया मानता है.
होली देश रंगों और खुशियों भरा त्योहार है. इस वर्ष 25 मार्च को होली खेली जाएगी. होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. इसकी कई पौराणिक मान्यता प्रचलित हैं. आयुर्वेद में भी ऋषि मुनियों ने होली के लिए कई महत्वपूर्ण बातें बताई हैं जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं.
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉक्टर नागेंद्र नारायण शर्मा कहते हैं आयुर्वेद के अनुसार वर्ष को ऋतुओं की सूर्य की गति के हिसाब से बांटा गया है. 6 ऋतुओं में शिशिर ऋतु के बाद वसंत ऋतु आती है, जिसमें होली का त्यौहार मनाया जाता है. शिशिर ऋतु में शरीर के अन्दर जो कफ जमा हो जाता है वह वसंत ऋतु में सूर्य के ताप बढ़ने से किरणों की गर्मी में पिघलने लगता है. इससे शरीर में कफ दोष कुपित हो जाता है और कफ से होने वाले रोग उत्पन्न हो जाते हैं. इसके हिसाब से आयुर्वेद में ऋषि मुनियों ने विधान बनाए हैं. वसंत ऋतु में सूर्य की रोशनी से शरीर की शक्ति छीण हो जाती है और इस वजह शरीर में आलस भरा जाता है.
शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए होली के विधान
डॉक्टर नागेंद्र नारायण शर्मा कहते हैं इस मौसम में पहले हैजा, चेचक जैसी बीमारियां फैलती थीं. इसे देखते हुए ऋषि मुनियों ने होली के पर्व में आग जलाना, मस्ती करना और पूरे वातावरण को आनंदित कर शरीर को अच्छी ऊर्जा देने के लिए तमाम प्रकार के विधान बनाए हैं.
होलिका दहन से रोगाणुओं का नाश
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉक्टर नागेंद्र नारायण शर्मा ने कहा इस मौसम में संक्रामक बीमारियां ज्यादा फैलती हैं. होलिका दहन में गाय के उपले, कपूर, नारियल, लकड़ियां और अन्य द्रव्य पदार्थ डालकर इसलिए जलाया जाता है, ताकि जलती हुई अग्नि के धुएं से क्षेत्र के वातावरण में फैले रोगाणु खत्म हो जाएं और शुद्धता आए.