हाईकोर्ट ने पूर्व कलेक्टर समेत आधा दर्जन अधिकारियों को भेजा नोटिस, ये है मामला…
बिलासपुर । दो किसानों की जमीन पर बिना अधिग्रहण किए सड़क बनाने के मामले में हाई कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को अवमानना का दोषी ठहराया है। किसानों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूर्व कलेक्टर नूपुर राशि पन्ना समेत आधा दर्जन अधिकारियों को 3 सितंबर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया है।
बिना अधिग्रहण के जमीन पर कब्जा
यह मामला अविभाजित जांजगीर-चाम्पा जिले के ग्राम अंडी पोस्ट किरारी निवासी नेतराम भारद्वाज और भवानीलाल भारद्वाज से जुड़ा है। पीडब्ल्यूडी विभाग ने बिना किसी अधिग्रहण प्रक्रिया के इन किसानों की कृषि भूमि पर सड़क निर्माण कर दिया। किसानों ने जब भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजे की मांग की, तो अफसरों ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। इसके बाद किसानों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पीडब्ल्यूडी की इस मनमानी की शिकायत की।
कोर्ट के आदेश की अवहेलना
नवंबर 2022 में, जस्टिस आरसीएस सामंत की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की थी। कोर्ट ने पाया कि किसानों की जमीन 2012 में ली गई थी और अब तक उन्हें मुआवजा नहीं मिला है। कोर्ट ने कलेक्टर और भूमि अधिग्रहण अधिकारी को चार महीने के भीतर मुआवजा निर्धारित कर भुगतान करने का आदेश दिया था। लेकिन आदेश के बावजूद अधिकारियों ने कोई कदम नहीं उठाया, जिससे किसानों को पुनः हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
अवमानना याचिका
अधिवक्ता योगेश चंद्रा के माध्यम से दायर याचिका में किसानों ने आरोप लगाया कि कोर्ट के आदेश के बावजूद मुआवजा नहीं दिया गया, जिससे अधिकारियों ने न्यायालय की अवहेलना की है। इस पर जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लिया और अधिकारियों को अवमानना का दोषी मानते हुए नोटिस जारी किया।
अवमानना के दोषी अधिकारी
इस मामले में पूर्व कलेक्टर सक्ती नूपुर राशि पन्ना, राकेश द्विवेदी (अनुविभागीय अधिकारी, पीडब्ल्यूडी), रूपेंद्र पटेल (अनुविभागीय दंडाधिकारी, मालखरौदा), रेना जमील (मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत), और प्रज्ञा नंद (कार्यकारी अधिकारी, पीडब्ल्यूडी) को दोषी ठहराया गया है। हाई कोर्ट ने इन सभी अधिकारियों को 3 सितंबर को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है।
यह मामला सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाही और कोर्ट के आदेश की अवमानना का गंभीर उदाहरण है। अगर दोष साबित होता है, तो दोषी अधिकारियों को सजा और जुर्माना दोनों भुगतना पड़ सकता है।