अच्छी फसल से लेकर दोस्ती की मिलती है मिसाल, भोजली छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण त्योहार
बिलासपुर। भोजली के जरिए इस दिन जिसने भी मित्र बनाया उसे निभाने की परंपरा कहीं और नजर नहीं आएगी। मित्र बनाते ही दोनों परिवार के बीच घनिष्टता और रिश्तेदारी ऐसी कि सुख-दुख के काम में मित्र ही आगे-आगे नजर आते हैं। मित्र के साथ पूरे परिवार का आत्मीय लगाव जुड़ जाता है। परिवार के सदस्यों की तरह आपस में घुलमिल कर रहने के अलावा सुख-दुख दोनों परिवार साथ-साथ भोगते हैं। यह परंपरा आपको कहीं और नजर नहीं आएगी।
भोजली का त्योहार मित्रता के अलावा नई फसल की कामना के लिए गांवों में यह त्योहार मनाने की भी है। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं, लड़कियां, पुरुष व युवा एक-दूसरे को भोजली का दूब भेंट कर जीवनभर मित्रता का धर्म निभाने का संकल्प लेते हैं।
भोजली त्योहार के मौके पर महिलाएं और युवतियों ने भोजली की टोकरियां सिर पर रखकर तालाब किनारे पहुंचकर इस भरोसे और उम्मीद के साथ विसर्जन करती हैं कि इस वर्ष फसल अच्छी होगी। उनकी मित्रता चिर स्थायी रहेगी और अगले वर्ष फिर हंसी खुशी सब मिलकर भोजली का त्योहार मनाएंगी। छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक वैभव के प्रतीक भोजली पर्व का अपना अलग महत्व है।
ऐसे मनाते हैं भोजली का त्योहार
भोजली त्यौहार हर साल रक्षाबंधन त्यौहार के दूसरे दिन मनाते हैं। नागपंचमी के दिन सुबह गेहूं और ज्वार को भिगोया जाता है। शाम को बांस के एक टोकरी में मिट्टी और खाद डाल कर उसमें गेहूं बीज को डाला जाता है। पांच दिन बाद भोजली बाहर निकल कर आता है। रक्षा बंधन के दूसरे दिन तालाब या नदी में विसर्जन किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह मान्यता है कि जितनी बड़ी भोजली रहेगी। फसल उतनी ही अच्छी होगी।
क्या है भोजली पर्व
शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला भोजली पर्व मूलत: बहू-बेटियों का ही पर्व है। सुहागिन महिलाएं व कुंआरी कन्याएं बांस की टोकरी में मिट्टी भरकर धान, जौ, उड़द बोती हैं। पहले इसे नागपंचमी के दिन अखाड़ा की मिट्टी लाकर बोया जाता था। लेकिन, समय के साथ अखाड़ा की परंपरा नहीं रही। आजकल इसे पंचमी से लेकर नवमीं तिथि तक सुविधानुसार बोते हैं।
इसे घर के अंदर छांव में रखा जाता है। इसे श्रावण पूर्णिमा को मनाए जाने वाले पर्व रक्षाबंधन के दिन या इसके दूसरे दिन राखी चढ़ाने के बाद विसर्जित किया जाता है। इसे लगाने के बाद इसमें हल्दी पानी का छिड़काव करते हैं। रोज इसकी पूजा करते हैं। भोजली गीत गाकर सेवा करते हैं। दीपक जलाते हैं।