नागपुर में बाढ़ का खतरा

नागपुर: सिटी में अंबाझरी ओवरफ्लो के चलते बाढ़ की स्थिति के बाद पुनरावृत्ति टालने के लिए भले ही उपाय किए जा रहे हों लेकिन तमाम उपायों के बावजूद कई बस्तियां ऐसी हैं जो मौत के मुहाने पर बसी हुई हैं, जबकि इन्हें हटाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। दिन-ब-दिन लगातार बाढ़ का खतरा बढ़ने के बाद भी महानगरपालिका केवल नाग नदी की सफाई और उसके चौड़ाईकरण में ही लगी हुई है।

नाग नदी, पीली नदी और पोहरा नदी में कई ऐसे स्थान हैं जहां हर वर्ष भारी बारिश के बाद स्थिति बेकाबू हो जाती है। किनारे पर बसीं बस्तियों में बाढ़ का प्रकोप होता है। कई बार जान-माल के नुकसान की घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसे में समय रहते यदि प्रशासन नहीं जागा तो फिर एक बार अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता है।
सर्वे में उजागर हो चुके हैं आंकड़े
97 बस्तियां ऐसी हैं जिन्हें निचले इलाकों में होने के कारण बारिश का प्रकोप झेलना पड़ता है।
73 सड़कों पर ऐसे स्थल हैं जहां हर समय पानी जमा हो जाता है।
66 बस्तियां मनपा के अधिकार क्षेत्र में है।
25 आवासीय क्षेत्र एनआईटी के क्षेत्र में हैं।
घोषणा कर पल्ला झाड़ लेती है मनपा
हर साल बारिश के पहले मनपा ऐसे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को चेतावनी देती है। भारी बारिश के दौरान सुरक्षित स्थान पर जाने की हिदायत दी जाती है। वास्तविकता यह है कि हर साल केवल घोषणा होती है, जबकि कोई ठोस उपाय नहीं होते हैं। जानकारों की मानें तो सिटी में स्ट्राम वाटर ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से फेल हो चुका है। यहां तक कि मनपा बारिश के बाद से पूरे साल इस ओर ध्यान नहीं देती है।
शायद ही स्ट्राम वाटर ड्रेनेज की कभी सफाई हुई है। बारिश के पूर्व केवल नदियों और नालों की सफाई पर ध्यान दिया जाता है। स्ट्राम वाटर ड्रेनेज सिस्टम पर ध्यान नहीं होने से सड़कों पर जमा होने वाले पानी की निकासी नहीं हो पाती। फलस्वरूप भारी बारिश के दौरान लंबे समय तक सड़कों पर पानी जमा रहता है जिससे ट्रैफिक भी जाम होता है।
सुस्त हैं अधिकारी
सूत्रों के अनुसार महानगरपालिका के अधिकारी रखरखाव के प्रति उदासीन दिखाई देते हैं, जबकि केवल नये टेंडर और कार्यों में उनकी दिलचस्पी होती है। सामान्य तौर पर हर दिन कार्यालयों में जाने पर साहब साइट पर होने की ही जानकारी उनके अधीनस्थ कर्मचारी देते हैं। नियमों के अनुसार किसी भी अधिकारी को बाहर जाते समय लॉग-बुक में इसकी जानकारी दर्ज करनी होती है किंतु यह जानकारी नहीं रखी जाती है।
इसकी वजह से संबंधित अधिकारी किस साइट पर हैं इसका आकलन कर पाना मुश्किल होता है, जबकि पूरे विकास कार्य केवल ठेकेदारों के भरोसे ही होते है। यहां तक कि कितना कार्य किया गया, इसका लेखा-जोखा भी ठेकेदार के कर्मचारी ही मनपा मुख्यालय लेकर अधिकारी के पास पहुंचते हैं। इसके आधार पर ही बिल बनाया जाता है।