एकजुटता से प्रगति पथ अग्रसर बालको – निर्मलेंदु
बालको के भूतपूर्व कर्मचारी 76 वर्षीय निर्मलेंदु समद्दार, जो बालकोनगर के निवासी हैं। याद करते हुए कहते है कि मैं 1970 में बेहतर रोजगार के तलाश में भिलाई से कोरबा आया। कोरबा परियोजना (जिसे अब बालको के नाम से जाना जाता है) शुरु हो रही थी। कंपनी के गैराज में 1970 से तकनीशियन के तौर पर काम करने वाले निर्मलेंदु ने उस दौर के बारे में बताया, जब कंपनी 200 कर्मचारियों के साथ सिविल कार्य करने में व्यस्त थी, जिसमें अधिकारी और कर्मचारी दोनों शामिल थे। 1972 में कंपनी ने एल्यूमिना उत्पादन के लिए फूटकापहाड़ से बॉक्साइट लाना शुरू किया। कंपनी में मेरी जिम्मेदारी 25 से ज़्यादा भारी वाहनों की देखरेख करने की थी। इसमें एल्युमिना चार्जर और लोडर भी शामिल थे। 1971 के अंत तक कंपनी में 600 कर्मचारी कार्यरत थे।
जब मैं कंपनी में शामिल हुआ उस समय टाइप डी (3 बीएचके घर) क्वार्टर की एक पंक्ति थी। जल्द ही बालकोनगर के सेक्टर-6 और सेक्टर-1 में टाइप बी (2 बीएचके फ्लैट) क्वार्टर बने। 1978 तक सेक्टर 5 में सिविक सेंटर (बाज़ार) बना तथा इस क्षेत्र का तेज़ी से विकास हुआ। 1980 तक बालको टाउनशिप एक समृद्ध समुदाय में विकसित हो गया था जिसमें स्कूल, बाज़ार और 1975 में बना 30 बिस्तरों वाला अस्पताल भी शामिल था।
अपने परिवार के बारे बताते हैं कि मेरी शादी 1974 में हुई थी। मैं तथा मेरी पत्नी यहाँ एक खुशहाल जीवन जी रहे है क्योंकि हमें ज़रूरतों की चीज़ें के साथ यहां एक सामाजिक माहौल भी मिला। जहाँ कई सांस्कृतिक क्लब और विभिन्न उत्सव साथ मनाने की परंपरा चली आ रही है। 1975 में कंपनी के कई सामाजिक-सांस्कृतिक क्लब थे, जिसमें केरल समाजम, बालको मलयाली एसोसिएशन, क्रिश्चियन एसोसिएशन, अग्रदूत, बालको सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति, आंध्र मित्र कला मंडली और कई अन्य शामिल थे। कर्मचारियों के लिए एक समर्पित क्लब था जिसे बालको क्लब कहा जाता था। 1973 में गठित बालको क्लब द्वारा सभी प्रमुख त्यौहार तथा फिल्म, समारोह, संगीत संध्याएँ और नाट्य आयोजित किये जाते थे।
वह बताते हैं कि बालको ने टाउनशिप की महिलाओं के लिए ‘बालको लेडीज़ क्लब’ नाम की एक कमेटी भी बनाई थी। 1973 में गठित बालको लेडीज़ क्लब ने टाउनशिप में खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए। क्लब द्वारा आस-पास के गाँवों में स्वास्थ्य शिविर, छात्रवृत्ति और सामुदायिक कार्यों में दान जैसे सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्य का भी समर्थन किया। क्लब ने क्षेत्र के सभी लोगों के लिए लोकप्रिय वार्षिक कार्निवल मेला का भी आयोजन किया।
कर्मचारियों को नवाचार करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए बालको ने 1973 में ‘सुझाव योजना’ की शुरुआत की थी। इस घटना को याद करके हुए वो बताते हैं कि विदेश से खरीदे गए उपकरणों के विकल्प के रूप में मैंने एक नया उपकरण पेश करके कंपनी के करीब 40,000 रुपये बचाए जिसके के लिए मुझे बालको की ‘सुझाव योजना’ के तहत नकद पुरस्कार दिया गया था।
निर्मलेंदु को डिज़ाइन और मॉडल का शौक था। अपनी खुशी जाहिर करते हैं कि मैंने बालको के लिए कई झांकियाँ बनाईं। हमने 1980 के दशक की शुरुआत में पहली बार भोपाल प्रदर्शनी में भाग लिया, जहाँ हमने स्मेल्टर और उत्पाद रेंज के छोटे मॉडल का प्रदर्शन किया। उस वर्ष बालको ने जीत हासिल की। एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के रूप में बालको ने निजीकरण तक भोपाल, रायपुर और बिलासपुर में कई झांकी प्रतियोगिता में भाग लिया। कंपनी ने राष्ट्रीय महत्व के दिन अपने समारोह में इस कला को अभी भी बरकरार रखा है।
निर्मलेंदु मुस्कुराते हुए अपने बगीचे को देखते हुए कहते हैं कि टाउनशिप ने इस क्षेत्र की सुंदरता को बढ़ाया है। क्षेत्र में दुर्लभ फूल के साथ कंपनी और उसके कर्मचारियों ने विभिन्न प्रजातियाँ लाए, जो अब लोगों के बरामदों में खिलें हैं।1980 तक कंपनी ने टाउनशिप में कई फूलों के पौधे लगाए थे, जिनमें गुलमोहर और निलगिरी जैसी प्रजातियाँ शामिल थीं। आज बालको टाउनशिप में सूरजमुखी, बोगनविलिया, हिबिस्कस, चमेली और कई अन्य प्रकार के फूलों के पौधे हैं। मैं अपना अधिकांश समय बागवानी और चित्र बनाने में बिताता हूँ। वह अंत में कहते हैं कि 54 साल हो गए और यह अभी तक जारी है।
बालको की शुरूआती यात्रा
27 नवंबर, 1965 की स्थापना के साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र में एल्यूमिनियम उत्पादन करने वाली पहली कंपनी बनी। 1966 में कोरबा साइट के ऑफिस की स्थापना के बाद 1969 से सिविल कार्य आरंभ हो गया। 1973 में एलुमिना प्लांट की शुरूआत हुई और पहली बार 1974 में सोवियत संघ (रूस) को 8000 टन एलुमिना निर्यात कर कंपनी ने बड़ी उपलब्धि हासिल की। एक लाख टन वार्षिक एल्यूमिनियम उत्पादन क्षमता के स्मेल्टर को चार चरणों में स्थापित किया गया। सभी चरण में 25 हजार टन वार्षिक क्षमता के स्मेल्टर का निर्माण हुआ। पहले एवं दूसरे चरण के स्मेल्टर को उत्पादन के लिए 1975 तथा 1977 में मंजूरी मिली तथा तीसरे एवं चौथे चरण का निर्माण कार्य 1977 एवं 1978 तक मुकम्मल हो गया था।
कंपनी ने पहली बार 1976 में ‘भारततल’ इंगट जापान को निर्यात किया। इसी के साथ अपने प्रचालन का विस्तार करते हुए कंपनी ने 1976 में एक प्रॉपरज़ी रॉड उत्पादन इकाई, 1978 में बिलेट और 1980 में स्लैब रोलिंग की स्थापना की। साथ ही 1978 में अलॉय पिग्स एवं बिलेट तथा 1979 में एक्सट्रूशन प्रोडक्ट का कॉमर्शियल प्रोडक्शन शुरू किया। कंपनी के उत्पाद में एलुमिना, पिघला धातु, ईंगट, एलॉय मेटल, बिलेट, स्लैब, प्रॉपरज़ी रॉड, एक्सट्रूशन और रोल्ड उत्पाद शामिल थे।
बालको ने 1970 में एक आवासीय टाउनशिप को विकसित किया जिसमें सभी सामुदायिक सुविधाएँ उपलब्ध थीं। 1980 तक समृद्ध टाउनशिप विकसित किए गए, जिसमें स्कूल एवं बाज़ार शामिल थे। इसके साथ ही 1975 में 30 बिस्तर वाला अस्पताल बना। बालको ने सभी समुदायों के लिए पूजा स्थल बनवाएं, जिनमें मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च आदि शामिल थे।
2001 में भारत सरकार ने भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) के 51% शेयरों का विनिवेश स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (अब वेदांता लिमिटेड है) में किया। विनिवेश के बाद बालको ने तेजी से विकास की राह पर कदम बढ़ाया। इन छह दशकों में बालको अपनी क्षमता को 1 मिलियन टन प्रति वर्ष तक पहुंचने का लक्ष्य रखता है। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर कंपनी छठी सबसे बड़ी स्मेल्टर बन जाएगी। नेतृत्व और नवाचार के छह शानदार दशकों की मदद से कंपनी एल्यूमिनियम उद्योग के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भरता बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।