आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीजेपी-कांग्रेस एक साथ
नई दिल्ली. अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को कोटे के अंदर कोटा देने और क्रीमी लेयर का रिजर्वेशन खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बीजेपी और कांग्रेस एकमत दिखाई दे रहे हैं। हालांकि दोनों ही दलों के सहयोगियों में उलझन देखी जा रही है। बाकी दलों का स्टैंड उनके वोट बैंक के आधार पर है। सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद कई दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। वहीं कई दल अब भी उलझन में हैं कि इसका स्वागत किया जाए या फिर विरोध। कांग्रेस ने इस फैसले को लेकर चुप्पी साध रखी है।
जानकारों का कहना है कि इस फैसले से अनुसूचित जाति में दबदबा रखने वाली जातियों को नुकसान हो सकता है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर रिव्यू पिटिशन फाइल करेंगे। बिहार के सर्वे के मुताबिक राज्य में 5.31 फीसदी आबादी पासवानों की है। यादव के बाद ये दूसरी जाति है जिसकी आबादी सबसे ज्यादा है। वहीं तीसरे नंबर पर जावट हैं जिनकी संख्या 5.25 फीसदी है।
साल 2008 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘महादलित’ के अंदर कई अन्य जातियों को भी शामिल कर दिया था। वहीं पासवान को इससे बाहर रखा गया। जेडीयू का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उसे नीतीश कुमार ने 2008 में ही लागू कर दिया था। वहीं दूसरे केंद्रीय मंत्री और HAM नेता जीतनराम मांझी अब भी उलझन में हैं कि इस फैसले पर क्या कहा जाए। उन्होंने अब तक चुप्पी साध रखी है। मांझी मुसहर समाज से आते हैं। यह जाति महादलित के अंतरगत आती है और उनकी संख्या 3 फीसदी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुसहर समाज को फायदा मिल सकता है और शायद इसीलिए जीतनराम मांझी ने चुप्पी साध रखी है।
आरजेडी ने इस फैसले का विरोध किया है। तेजस्वी यादव और चिराग पासवान इस मामले में एकमत दिखाई दे रहे हैं। उनका कहा है कि दलितों के आरक्षण के लिए कभी आय को आधार नहीं बनाया गया। वहीं उत्तर प्रदेश में बीजेपी के साथ निषाद पार्टी और सुहैल देव भारतीय समाज पार्टी ने भी फैसले का स्वागत किया है। निषाद पार्टी की मांग है कि निषादों को भी एससी कैटिगरी में शामिल किया जाए। वहीं ओपी राजभर ओबीसी कोटा के अंदर ईबीसी कोटा की मांग कर रहे हैं।
मायावती और चंद्रशेखर दोनों ने ही इस फैसले का विरोध किया है। उनका कहा है कि इस तरह से आरक्षण को खत्म करने की साजिश की जा रही है। महाराष्ट्र में प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी ने भी फैसले का विरोध किया है। महारों के समर्थन वाली पार्टी का कहना है कि यह उनके खिलाफ है। वहीं दक्षिण भारत की पार्टियों ने इस फैसले का समर्थन किया है।