क्या ‘गारंटी’ से जनता के मुद्दे हो रहे हैं गायब ?
देश में लोकसभा निर्वाचन 2024 को लेकर जिस तरह गहमागहमी मची हुई है, ऐसे में आम जनता की चुप्पी समझ से परे हैं या फिर मौजूदा सरकार व विपक्ष पार्टियों की ‘गारण्टी’ ने आम लोगों की जरूरतें, समस्याएं को ही गायब कर दी है।
कभी प्याज की महंगाई, सत्ता सम्हालने वाले सरकार के आंख से आंसू निकालने के लिए मजबूर कर देती थी।
आज रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, दवाई, पेयजल, पर्यावरण, आवास, सुरक्षा, भोजन, सामाजिक न्याय, महिला सुरक्षा, भ्र्ष्टाचार, सीमापार घुसपैठ जैसी बुनियादी समस्याएं व जरूरतें चुनावी मुद्दे नहीं बनना बल्कि गारण्टी के इर्दगिर्द चुनावी वैतरणी पार करना आज सभी दलों के लिए सबसे सरल व सस्ता उपाय हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बांड को लेकर दिए निर्देश आम लोगों की जानकारी तक पहुंची है या नहीं? नहीं पहुंची तो क्यों ? क्या भारतीय मीडिया के लिए अपने पाठकों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी विपक्षी दलों के भरोसे छोड़ चुके हैं? जिस तरह से देश में गारण्टी देने की होड़ सभी दलों द्वारा दी जा रही है, वास्तव में यह भारतीय लोकतंत्र के लिए कितने कारगर होंगे यह भविष्य की गर्त में है।
देश की सबसे बड़ी राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस सहित विपक्ष के नेताओं का भरती होना यह महज विचारधारा की लड़ाई से पलायन या फिर अति महत्वकांक्षा या फिर डर, भय बचने का उपाय! आज भारतीय लोकतंत्र में सीबीआई, ईडी जैसी संस्थाओं के कार्यप्रणाली पर विपक्षी दलों द्वारा लगातार सवाल व प्रश्नचिन्ह लगाए जाने से क्या आम भारतीयों की समस्या का समाधान सरकार, शासन, प्रशासन के बजाय सर्वोच्च न्यायालय को करना पड़े तब ऐसी परिस्थितियों में आम जनता की आवाज मीडिया से गौण होना भी चिंताजनक है।
चुनावी माहौल में एक ओर बदजुबानी का शोर ज्यादा सुनाई पड़ रही है, जबकि आम लोगों की आवाज दब कर रह गई है। वह आवाज जिसे रोजगार चाहिए, महंगाई से छुटकारा चाहिए, भ्र्ष्टाचार, भाई-भतीजावाद, भय, ऊंच-नीच से मुक्ति चाहिए। महिला सशक्तीकरण के नाम पर करोड़ों बजट देने वाले शासन में आज भी महिलाएं कुपोषण से ग्रस्त है, बच्चे आज भी कुपोषित हैं, महिला हिंसा व नशे से समाज जिस तरह गिरफ्त में है, ऐसे में राम राज्य की परिकल्पना कितना उचित है।
आज जनता के मुद्दे गौण हो रहे हैं जबकि गारण्टी की धार तेज होते जा रहे हैं। ऐसे में क्या गारंटी देने वाले का भी एक्सपायरी तिथियां तय होगी ? यह भी जनता को ही तय करना होगा वरना विज्ञान को पढ़ना जितना जरूरी है, उतना ही इतिहास को । नहीं तो आने वाली पीढी भुगतने को तैयार रहेगी और अपने पूर्वजों को ताउम्र कोसेगी।