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10 साल, अरबों रुपये… फिर भी पब्लिक पूछे – ‘कहाँ हैं स्मार्ट शहर?’

Smart Cities Mission: साल 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून को स्मार्ट सिटी मिशन (Smart Cities Mission – SCM) की शुरुआत की थी, तब इसका मकसद था- भारत के शहरों को आधुनिक तकनीक और बुनियादी ढांचे से सुसज्जित करना ताकि नागरिकों को बेहतर जीवन मिल सके। अब जब यह मिशन अपना एक दशक (10 साल) पूरा करने के करीब है, SBI रिसर्च की रिपोर्ट इस पहल की सफलता की कहानी बयां कर रही है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 10 साल में ₹1.64 लाख करोड़ खर्च कर 100 शहरों में अब तक 8,000 से ज्यादा मल्टी-सेक्टोरल प्रोजेक्ट्स पर काम हुआ है। इसमें से 90% काम पूरा कर लिया गया है। इससे न सिर्फ शहरों के इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार आया है बल्कि समाज पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। रिपोर्ट बताती है कि स्मार्ट सिटी मिशन ने शहरों को साफ हवा दी है और क्राइम भी घटा है। इसके साथ ही रिपोर्ट स्मार्ट सिटी मिशन के सामने खड़ी चुनौतियों पर भी प्रकाश डालती है।
10 साल…₹1.64 लाख करोड़ खर्च, बदले शहरों के चेहरे

देशभर के 100 शहरों में अब तक 8,000 से ज्यादा मल्टी-सेक्टोरल प्रोजेक्ट्स पर काम हुआ, जिनकी लागत लगभग ₹1.64 लाख करोड़ है। इन प्रोजेक्ट्स में से 90% से ज्यादा (₹1.50 लाख करोड़ की लागत वाले 7,504 प्रोजेक्ट्स) को पूरा कर लिया गया है। अब तक 100 शहरों पर खर्च किए गए कुल ₹1.64 लाख करोड़ में से 92% राशि सिर्फ 21 प्रमुख राज्यों में खर्च की गई है। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र टॉप 3 राज्य हैं, जिन्होंने कुल खर्च का एक-तिहाई हिस्सा उपयोग किया है। पूरी परियोजना लागत का लगभग 50% हिस्सा केवल दो क्षेत्रों—मोबिलिटी और जल/स्वच्छता पर खर्च हुआ है, जिनमें 3,000 से ज्यादा परियोजनाएं शामिल हैं। औसतन हर परियोजना पर ₹22 करोड़ खर्च किए गए हैं।

स्मार्ट सिटी मिशन ने दी साफ हवा, घटाया क्राइम

सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं, इस मिशन ने समाज पर भी सकारात्मक असर डाला है। रिपोर्ट बताती है कि जिन राज्यों ने फंड्स का 80% से ज्यादा उपयोग किया, वहां अपराध दर (crime rates) में 27% की गिरावट देखी गई। वहीं, स्मार्ट शहरों में वायु गुणवत्ता (air quality) में 23% सुधार दर्ज किया गया है, जो गैर-स्मार्ट शहरों की तुलना में काफी बेहतर है। ये आंकड़े 2018 से 2024 की छह साल की अवधि को कवर करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि हर शहर ने अपनी जरूरतों के हिसाब से विविध प्रकार की परियोजनाएं विकसित की हैं, जिनमें से कई पहली बार लागू की गई अनोखी पहलें हैं। इससे शहरों की क्षमता और अनुभव दोनों में वृद्धि हुई है और स्थानीय स्तर पर व्यापक बदलाव लाने में मदद मिली है।
स्मार्ट सिटी मिशन से पिछड़े राज्यों ने भी पकड़ी रफ्तार

रिपोर्ट बताती है कि स्मार्ट सिटी मिशन ने क्षमता के विकेंद्रीकरण में सफलता हासिल की है, जिससे कम संसाधन वाले राज्य भी परियोजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करने में सक्षम हो पाए हैं। इस बात की पुष्टि राज्यों में परियोजनाओं की पूर्णता दर के वितरण से भी होती है, जिससे पता चलता है कि बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे पारंपरिक रूप से पिछड़े माने जाने वाले राज्यों ने भी उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है।

इसके अलावा, अधिकांश राज्यों ने स्मार्ट सिटी मिशन के कार्यान्वयन में ठोस प्रगति दिखाई है। यह न सिर्फ वित्तीय आवंटन की समानता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कार्यान्वयन में भी समानता सुनिश्चित की गई है।

स्मार्ट सिटी मिशन के सामने फंडिंग की समस्या

SBI रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में स्मार्ट सिटी मिशन की सफलता के साथ ही साथ इसके सामने आ रही चुनौतियों और इस मिशन की कुछ खामियों पर भी प्रकाश डाला है। इस मिशन के तहत वैकल्पिक फंडिंग व्यवस्था अपेक्षित सफलता नहीं हासिल कर सकी है। PPP मॉडल भी बेअसर रहा। इसके अलावा, म्यूनिसिपल बॉन्ड्स का प्रदर्शन भी कमजोर रहा है, जिसकी वजह शहरी निकायों की सीमित आय और सरकारी अनुदानों पर निर्भरता बताई गई है।
फेल हुई वैकल्पिक फंडिंग, PPP और लोन टारगेट से काफी पीछे

हालांकि शहरों के पास फंडिंग के लिए अलग-अलग स्रोत उपलब्ध हैं, लेकिन राज्यों की प्रगति संतोषजनक नहीं रही है। दिसंबर 2023 तक 100 स्मार्ट शहरों में से सिर्फ 6% परियोजनाएं ही पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के जरिए फंड की गईं, जबकि लक्ष्य 21% का था। इसके अलावा भोपाल, हुबली-धारवाड़, कोच्चि, विशाखापत्तनम, चंडीगढ़ और श्रीनगर जैसे केवल 6 शहर ही ₹5,298 करोड़ रुपये का लोन जुटा पाए, जो कि प्रस्तावित ₹9,844 करोड़ का सिर्फ 54% है। यह स्थिति दर्शाती है कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था (alternative financing mechanisms) उतनी सफल नहीं रही, जितनी अपेक्षा की गई थी।
स्मार्ट सिटी मिशन में म्यूनिसिपल बॉन्ड्स फेल

इसके अलावा, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत म्यूनिसिपल बॉन्ड्स अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं। इसका मुख्य कारण शहरी निकायों (ULBs) की वित्तीय सीमाएं और सरकारी अनुदानों पर अत्यधिक निर्भरता है। हालांकि नगर निगमों के पास कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं, लेकिन उनकी आय काफी सीमित है। वित्त वर्ष 2023-24 में नगर निगमों की कुल राजस्व प्राप्तियां देश की जीडीपी का सिर्फ 0.6% रहीं, जो कि केंद्र सरकार (9.2%) और राज्य सरकारों (14.6%) की तुलना में बेहद कम है।
मध्य प्रदेश से ले सकते हैं सीख

मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल देश के सबसे सफल स्मार्ट शहरों में शामिल हैं। इंदौर और भोपाल नगर निगम ने जून 2018 और सितंबर 2018 में सफलतापूर्वक म्यूनिसिपल बॉन्ड्स जारी किए थे। देश में पहला प्राइवेट प्लेसमेंट म्यूनिसिपल बॉन्ड नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर जारी करने के बाद, इंदौर नगर निगम ने फरवरी 2023 में ग्रीन बॉन्ड के जरिए ₹244 करोड़ भी जुटाए। यह देश का पहला सार्वजनिक रूप से जारी किया गया ग्रीन म्यूनिसिपल बॉन्ड था। इस फंड का इस्तेमाल 60 मेगावॉट की क्षमता वाला सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित करने के लिए किया गया, ताकि इंदौर नगर निगम द्वारा पानी की सप्लाई और पंपिंग पर होने वाला बिजली खर्च कम किया जा सके।

इंदौर स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने अब तक कुल 1.26 एकड़ जमीन का मॉनेटाइजेशन किया है, जिससे ₹8 करोड़ की आय प्राप्त हुई है। वहीं भोपाल स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने 10.86 एकड़ जमीन का मॉनेटाइजेशन करते हुए ₹297 करोड़ का राजस्व अर्जित किया है। ऐसा माना जा रहा है कि अन्य स्मार्ट शहर भी मध्य प्रदेश से सीख लेकर अब तक अनदेखे वित्तीय संभावनाओं का दोहन कर सकते हैं।
स्मार्ट सिटी मिशन आगे की राह क्या होगी?

साल 2011 की जनगणना के अनुसार शहरों में वर्तमान में भारत की लगभग 31% जनसंख्या रहती है और ये सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 63% का योगदान करते हैं। अनुमान है कि 2030 तक शहरी क्षेत्रों में देश की 40% जनसंख्या निवास करेगी और ये क्षेत्र GDP में 75% तक का योगदान देंगे। शहरों में तेजी से बढ़ती आबादी के कारण बुनियादी ढांचे के प्रबंधन और सेवाओं की आपूर्ति में चुनौतियां पैदा होती हैं। इन चुनौतियों से प्रभावी और कुशल तरीके से निपटने के लिए भारत में स्मार्ट सिटी मिशन की शुरुआत की गई है।

स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है – उनकी फंडिंग कैसे की जाए? भारत में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) को प्रोत्साहित करने पर जोर दे रही है। इसके लिए शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies – ULBs) के संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है, जैसे कि यूज़र फीस, लाभार्थी शुल्क, प्रभाव शुल्क (impact fees), जमीन का मॉनेटाइजेशन, कर्ज और ऋण आदि। साथ ही नवीन वित्तीय साधनों जैसे कि क्रेडिट रेटिंग के आधार पर म्यूनिसिपल बॉन्ड्स, पूल्ड फाइनेंस डेवलपमेंट फंड स्कीम और टैक्स इन्क्रिमेंट फाइनेंसिंग (TIF) का भी सहारा लिया जा रहा है। इसके अलावा, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से ऋण लेने और नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) का लाभ उठाने की रणनीति भी अपनाई जा रही है।

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