सियासी गलियारा

राहुल गांधी ने सत्यम, शिवं सुंदरम पर लिखा लेख, हिंदू होने का बताया अर्थ 

नई दिल्ली । कांग्रेस नेता और वायनाड सांसद राहुल गांधी जनता से जुड़ने के ‎लिए अलग-अलग प्रयोग करते रहते हैं। अब उन्होंने अपने एक्स अकाउंट से एक आर्टिकल शेयर किया है, जो एक अखबार में भी प्रकाशित हुआ है। ‘सत्यम, शिवम, सुंदरम’ शीर्षक वाले इस लेख में उन्होंने हिंदू संस्कृति पर अपने विचार लिखे हैं। कांग्रेस नेता ने अपने आर्टिकल की शुरुआत करते हुए ‎‎लिखा हैं, ‘कल्पना कीजिए, जिंदगी प्रेम और उल्लास का, भूख और भय का एक महासागर है और हम सब उसमें तैर रहे हैं। इसकी खूबसूरत और भयावह, शक्तिशाली और सतत परिवर्तनशील लहरों के बीचोंबीच हम जीने का प्रयत्न करते हैं। इस महासागर में जहां प्रेम, उल्लास और अथाह आनंद है- वहीं भय भी है। इस महासागर में सामूहिक और निरंतर यात्रा का नाम जीवन है जिसकी भयावह गहराइयों में हम सब तैरते हैं। भयावह इसलिए, क्योंकि इस महासागर से आज तक न तो कोई बच पाया है, न ही बच पाएगा।’कांग्रेस नेता राहुल गांधी हिंदू को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, ‘जिस व्यक्ति में अपने भय की तह में जाकर इस महासागर को सत्यनिष्ठा से देखने का साहस है- हिंदू वही है। 

यह कहना कि हिंदू धर्म केवल कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं तक सीमित है उसका अल्प पाठ होगा। किसी राष्ट्र या भूभाग-विशेष से बांधना भी उसकी अवमानना है। भय के साथ अपने आत्म के सम्बंध को समझने के लिए मनुष्यता द्वारा खोजी गई एक पद्धति है हिन्दू धर्म। यह सत्य को अंगीकार करने का एक मार्ग है। अस्तित्व के लिए संघर्षरत सभी प्राणियों की रक्षा वह आगे बढ़कर करता है। सबसे निर्बल चिंताओं और बेआवाज चीखों के प्रति भी वह सचेत रहता है। निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है। सत्य और अहिंसा की शक्ति से संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूंढना ही उसका धर्म है। एक हिंदू में अपने भय को गहनता में देखने और उसे स्वीकार करने का साहस होता है। राहुल ने ‎लिखा ‎कि जीवन की यात्रा में वह भयरूपी शत्रु को मित्र में बदलना सीखता है। 

भय उस पर कभी हावी नहीं हो पाता, वरन घनिष्ठ सखा बनकर उसे आगे की राह दिखाता है। एक हिंदू का आत्म इतना कमज़ोर नहीं होता कि वह अपने भय के वश में आकर किसी क़िस्म के क्रोध, घृणा या प्रतिहिंसा का माध्यम बन जाए।’ ‘हिंदू जानता है कि संसार की समस्त ज्ञानराशि सामूहिक है और सब लोगों की इच्छाशक्ति व प्रयास से उपजी है। यह सिर्फ उस अकेले की संपत्ति नहीं है। सब कुछ सबका है। वह जानता है कि कुछ भी स्थायी नहीं और संसार-रूपी महासागर की इन धाराओं में जीवन लगातार परिवर्तनशील है। 

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